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हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

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Monday, December 30, 2013

mohabat se dur मोहब्बत से दूर

 
हमारी आँखें नम रहने लगी हैं बहुत
दिल की सीलन से सुगंध न मर जाये

10.37pm

कांपते होंठों पर लो फिर हंसी सजा ली हमने
कागज के फूल ही सही महफ़िल सज जायेगी

10.50 pn

हमने मोहब्बत से दूर आशियाँ बनाया है
रौशनी, खुश्बू को उसका पता नही बताया है

11.01pm, 21/11/13

1 comment:

Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.