ये ख़ामोशी से क्या कह दिया तुमने
वो गुल मुस्काए सुन तेरी बगिया में (1.17pm)
सोचती हूँ मैं ये, सोचती हूँ तुम्हे जब भी
क्या मेरे आँगन में आती है, तुम्हारी सोच भी
क्या सोच ही तुम्हारी मेरी राहें रहेंगी सदा
क्या तुम भी सुन लेते हो वो मेरी चुप सी सदा
यकीं है जिंदगी के मोड़ पर हम मिलेंगे तुमसे अक्सर
कैसे होंगे वो पल नमी लिए या मुस्कान लिए सोचूं पर
मिलेंगे हम अजनबी से या होगा दो स्नेह भरे दिलों का सामना
गुजरे लम्हों की होंगी बातें या उस आज से हमारा तुम्हारा होगा सामना
12.01pm, 30/8/2012
वो गुल मुस्काए सुन तेरी बगिया में (1.17pm)
सोचती हूँ मैं ये, सोचती हूँ तुम्हे जब भी
क्या मेरे आँगन में आती है, तुम्हारी सोच भी
क्या सोच ही तुम्हारी मेरी राहें रहेंगी सदा
क्या तुम भी सुन लेते हो वो मेरी चुप सी सदा
यकीं है जिंदगी के मोड़ पर हम मिलेंगे तुमसे अक्सर
कैसे होंगे वो पल नमी लिए या मुस्कान लिए सोचूं पर
मिलेंगे हम अजनबी से या होगा दो स्नेह भरे दिलों का सामना
गुजरे लम्हों की होंगी बातें या उस आज से हमारा तुम्हारा होगा सामना
12.01pm, 30/8/2012
मिलेंगे हम अजनबी से या होगा दो स्नेह भरे दिलों का सामना
ReplyDeleteगुजरे लम्हों की होंगी बातें या उस आज से हमारा तुम्हारा होगा सामना
बेहतरीन पंक्तियाँ
सादर
बढिया, बहुत सुंदर
ReplyDeleteबड़ी सहजता से लिखी गई पंक्तियाँ,अतिसुंदर...|
ReplyDeleteसादर.
बड़ी सहजता से लिखी गई पंक्तियाँ,,अतिसुंदर |
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ...शुभकामनाएं..प्रिति..
ReplyDeleteक्या तुम भी सुन लेते हो वो मेरी चुप सी सदा ..bahut khub
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