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Saturday, August 25, 2012

तुम छू लेते हो--Tum Chhoo lete ho


जब रातों में चाँदी बिखरी होती है
रात की रानी पुष्पित निखरी होती है
तरुवर शांत शीश झुकाए होते है
डालियों की नीड़ में पंछी मौन होते है
मन्द बयार बन तुम छू लेते हो

भोर लालिमायुक्त होती है
पत्तियाँ ओस से झिलमिलाती हैं
कलियाँ प्रस्फुटित हो मुस्काती हैं
मंत्रोचारण, अजान पवित्रता भर देते हैं
मेरे  हृदय  को प्रार्थना बन छू लेते हो

पर्वतशिखा रोशनी में चमकती हैं
तितलियाँ फूलों में मँडराती हैं
मछली नदी में जलक्रीड़ा करती है
नीरयुक्त बदली गगन में विचरती है
नयनों को चमक बन छू लेते हो

दिवस रात्री से मिलन करती है
कलरव करती खगटोली लौटती है
ममतामयी माँ शावक से लिपटती है
रम्य संध्या प्रीत जगाती है
मेरे होठों को मुस्कान बन छू लेते हो 

7 comments:

  1. किसी का स्पर्श जीवन में कितनी खुशियां भर देता है ... जादुई स्पर्श ...

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  2. बहुत शानदार र भावसंयोजन ,आपको बहुत बधाई
    आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
    और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है बस असे ही लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये
    http://madan-saxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena.blogspot.in/
    http://madanmohansaxena.blogspot.in/

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  3. utkrisht rachna ..is kavita ki jitni bhi tarif ki jaaye kam hai ..

    पर्वतशिखा रोशनी में चमकती हैं
    तितलियाँ फूलों में मँडराती हैं
    मछली नदी में जलक्रीड़ा करती है
    नीरयुक्त बदली गगन में विचरती है
    नयनों को चमक बन छू लेते हो

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Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.