कहते हैं 'आपके लायक नही हूँ ', वो
पोंछते हैं मेरे बहते अश्रु, वो
संवारते हैं मेरे बिखरे केश, वो
कहती हूँ ये हाथ स्वप्न हैं, मैं
दीप जला रोज धृत से भरते रहे, वो
मुझे हर पल अपने पास बुलाते रहे, वो
मेरे होठों पर मुस्कान सजाते रहे, वो
समझाती रही स्व को मरीचिका है, मैं
अपने रंगीन सपने सुनाते रहे, वो
उन सपनों में स्थान दिखाते रहे, वो
मेरी सूनी आँखों में आस भरते रहे, वो
कहती रही - ना, सपने बहुत सुंदर हैं, मैं
तुम जीवन संगिनी हो कहते हैं, वो
तुम और मैं एक हैं समझाते हैं, वो
पास रहो पर दूर चली जाओ चाहते हैं, वो
अब मुस्काऊँ कैसे, अब जियूं तो कैसे, मैं
बताते- मेरी सम्पूर्णता है केवल तुमसे, वो
कहते हैं - तुम मेरी अंश की जन्मदात्री, वो
जतलाते हैं मिलन है आत्मा का पारलौकिक, वो
कैसे इस लोक में किसी और को अब छू लूँ, मैं
12.22pm, 30/5/2012
पोंछते हैं मेरे बहते अश्रु, वो
संवारते हैं मेरे बिखरे केश, वो
कहती हूँ ये हाथ स्वप्न हैं, मैं
दीप जला रोज धृत से भरते रहे, वो
मुझे हर पल अपने पास बुलाते रहे, वो
मेरे होठों पर मुस्कान सजाते रहे, वो
समझाती रही स्व को मरीचिका है, मैं
अपने रंगीन सपने सुनाते रहे, वो
उन सपनों में स्थान दिखाते रहे, वो
मेरी सूनी आँखों में आस भरते रहे, वो
कहती रही - ना, सपने बहुत सुंदर हैं, मैं
तुम जीवन संगिनी हो कहते हैं, वो
तुम और मैं एक हैं समझाते हैं, वो
पास रहो पर दूर चली जाओ चाहते हैं, वो
अब मुस्काऊँ कैसे, अब जियूं तो कैसे, मैं
बताते- मेरी सम्पूर्णता है केवल तुमसे, वो
कहते हैं - तुम मेरी अंश की जन्मदात्री, वो
जतलाते हैं मिलन है आत्मा का पारलौकिक, वो
कैसे इस लोक में किसी और को अब छू लूँ, मैं
12.22pm, 30/5/2012
बहुत खूब प्रीति जी
ReplyDeleteसादर
कैसे इस लोक में किसी और को अब छू लूँ, मैं ?
ReplyDeleteकोमल भावनाओं में भिगोकर बहुत सुन्दर सुन्दर कारण गिनायें हैं आपने
बेहतरीन
Bahot Sunder SarKaar :)
ReplyDeleteउहापोह ... संशय
ReplyDeleteमन की मनोदशा को बखूबी दर्शाया है
मेरे होठों पर मुस्कान सजाते रहे, वो
ReplyDeleteसमझाती रही स्व को मरीचिका है, मैं
आपकी संवेदनशील ,प्रवाहमयी रचना में ,मैं क्या लिखूं समझ में नहीं आया बस एक शेर कामिल कर रहा हूँ -
" संगदिल की ठोकरों का हिसाब क्या करना
जख्म वस गए ,फितरत थी वो चला गया -"
पहली बार आपको पढ़ा ,हृदय व मन दोनों को स्निग्ध कर गया ..शुभकामनाये जी /
Pas raho pr dur chali jaao.....
ReplyDeleteWaah kaya baat hai...bekhubi ukera hai man ke bhaw ko
बहुत सुंदर प्रीति जी । मेरे नए पोस्ट खड़ी बोली के प्रतिनिधि कवि पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबड़ी संशय की स्थिति है ....खूबसूरती से उकेरा है भावों को
ReplyDeleteमन की व्यथा को बखूबी व्यक्त किया है..
ReplyDeleteगहन भाव लिए रचना...
waah..fantastic ...
ReplyDeleteमार्मिक हृदयस्पर्शी और भावमय प्रस्तुति.
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग आपको याद करता रहता है.
अपने स्नेह से वंचित न कीजियेगा प्रीति जी.
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
HOW ARE YOU SO NICE IN WRITING ?
ReplyDeleteवाह ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...
ReplyDeleteकल 06/06/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' क्या क्या छूट गया ''
भाव पूर्ण रचना
ReplyDeleteशुक्रिया पढ़वाने के लिये
वाह.............
ReplyDeleteबहुत सुंदर!!!!!
अनु
सुंदर भाव !
ReplyDeleteकोई इतना सुन्दर कैसे लिख सकता है...
ReplyDeleteसुंदर रचना...
ReplyDeleteसादर।
मेरी टिप्पणी नहीं दिख रही .... मन की कशमकश को खूबसूरती से उकेरा है
ReplyDeleteभाव मय रचना ... बहुत उम्दा ...
ReplyDeleteबताते- मेरी सम्पूर्णता है केवल तुमसे, वो
ReplyDeleteकहते हैं - तुम मेरी अंश की जन्मदात्री, वो
जतलाते हैं मिलन है आत्मा का पारलौकिक, वो
कैसे इस लोक में किसी और को अब छू लूँ, मैं
waah ....man me janmi shashvat prem ki mahaq hai kavita me ...very nice