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Monday, June 25, 2012

तस्वीर बदली चाहत नहीं


मैंने  तस्वीर  बदली

चाहत  नहीं

बाहर  की  रंगत  बदली

सीरत  नहीं


मैंने  कहना  छोड़ा

करना  नहीं

हाल  दिखाना  छोड़ा

तड़प  नहीं


मैंने  बताना  छोड़ा

साथ  नहीं

सहारा  लेना  छोड़ा

संभालना  नहीं


मैंने  श्रृंगार  छोड़ा

संवारना  नहीं

'प्रीति' जताना  छोड़ा

चाहना  नहीं

5.41pm, 21/6/2012

8 comments:

  1. उत्कृष्टता बरकरार है |
    सतत आभार है ||

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  2. bahut gahra likhti hain aap. kavita bhav aur shabd vyabjana dono hi drishtiyon se uttam hai. shubhakmanayen !

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  3. बहुत ही बढ़िया

    सादर

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  4. बहुत खूब ...
    चाहना कब 'जताना' का मोहताज़ रहा

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  5. मैंने तस्वीर बदली
    चाहत नहीं
    बाहर की रंगत बदली
    सीरत नहीं

    बहुत महत्वपूर्ण और नेक सोच है. प्रबल भावपक्ष युक्त सुंदर कविता.

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  6. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

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  7. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

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  8. मैंने श्रृंगार छोड़ा

    संवारना नहीं
    bahar kuchh nahi
    bhitar bhitar prem ka srot hai
    jahan se bhumigat ..jharana bah rahaa hai nirantar ...

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आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.