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Sunday, June 3, 2012

कैसे छू लूँ अब मैं


 कहते  हैं  'आपके  लायक  नही  हूँ ', वो
 
पोंछते  हैं  मेरे  बहते  अश्रु, वो
 
संवारते  हैं  मेरे  बिखरे  केश, वो 
 
कहती  हूँ  ये  हाथ  स्वप्न  हैं, मैं

दीप  जला  रोज  धृत  से  भरते  रहे, वो
मुझे  हर  पल  अपने  पास  बुलाते  रहे, वो
मेरे  होठों  पर  मुस्कान  सजाते  रहे, वो
समझाती  रही  स्व  को  मरीचिका  है, मैं

अपने  रंगीन  सपने  सुनाते  रहे, वो
उन  सपनों  में  स्थान  दिखाते  रहे, वो
मेरी  सूनी  आँखों  में  आस  भरते  रहे, वो
कहती  रही - नासपने  बहुत  सुंदर  हैं, मैं

तुम  जीवन  संगिनी  हो  कहते  हैं, वो
तुम  और  मैं  एक  हैं  समझाते  हैं, वो
पास  रहो  पर  दूर  चली  जाओ  चाहते  हैं, वो
अब  मुस्काऊँ  कैसे, अब  जियूं  तो  कैसे, मैं

बतातेमेरी  सम्पूर्णता  है  केवल  तुमसे, वो
कहते  हैं - तुम  मेरी  अंश  की  जन्मदात्री, वो 

जतलाते  हैं  मिलन  है  आत्मा  का  पारलौकिक, वो
कैसे  इस  लोक  में  किसी  और  को  अब  छू  लूँ, मैं
12.22pm, 30/5/2012

22 comments:

  1. बहुत खूब प्रीति जी


    सादर

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  2. कैसे इस लोक में किसी और को अब छू लूँ, मैं ?

    कोमल भावनाओं में भिगोकर बहुत सुन्दर सुन्दर कारण गिनायें हैं आपने

    बेहतरीन

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  3. Bahot Sunder SarKaar :)

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  4. उहापोह ... संशय
    मन की मनोदशा को बखूबी दर्शाया है

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  5. मेरे होठों पर मुस्कान सजाते रहे, वो
    समझाती रही स्व को मरीचिका है, मैं
    आपकी संवेदनशील ,प्रवाहमयी रचना में ,मैं क्या लिखूं समझ में नहीं आया बस एक शेर कामिल कर रहा हूँ -
    " संगदिल की ठोकरों का हिसाब क्या करना
    जख्म वस गए ,फितरत थी वो चला गया -"
    पहली बार आपको पढ़ा ,हृदय व मन दोनों को स्निग्ध कर गया ..शुभकामनाये जी /

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  6. Pas raho pr dur chali jaao.....
    Waah kaya baat hai...bekhubi ukera hai man ke bhaw ko

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  7. बहुत सुंदर प्रीति जी । मेरे नए पोस्ट खड़ी बोली के प्रतिनिधि कवि पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।

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  8. बड़ी संशय की स्थिति है ....खूबसूरती से उकेरा है भावों को

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  9. मन की व्यथा को बखूबी व्यक्त किया है..
    गहन भाव लिए रचना...

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  10. मार्मिक हृदयस्पर्शी और भावमय प्रस्तुति.

    मेरा ब्लॉग आपको याद करता रहता है.

    अपने स्नेह से वंचित न कीजियेगा प्रीति जी.

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  11. वाह ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...
    कल 06/06/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    '' क्‍या क्‍या छूट गया ''

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  12. भाव पूर्ण रचना
    शुक्रिया पढ़वाने के लिये

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  13. वाह.............
    बहुत सुंदर!!!!!

    अनु

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  14. कोई इतना सुन्दर कैसे लिख सकता है...

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  15. सुंदर रचना...
    सादर।

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  16. मेरी टिप्पणी नहीं दिख रही .... मन की कशमकश को खूबसूरती से उकेरा है

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  17. भाव मय रचना ... बहुत उम्दा ...

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  18. बताते- मेरी सम्पूर्णता है केवल तुमसे, वो
    कहते हैं - तुम मेरी अंश की जन्मदात्री, वो
    जतलाते हैं मिलन है आत्मा का पारलौकिक, वो
    कैसे इस लोक में किसी और को अब छू लूँ, मैं
    waah ....man me janmi shashvat prem ki mahaq hai kavita me ...very nice

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आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.