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Thursday, June 21, 2012

फिर कली बना दो

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तुम कहते हो
प्यार नही है
नफरत है मुझे
गर ऐसा ही है तो
क्यूँ नही कहती
छोड़ आओ
तुम सबको
       मेरे लिए (1.25 am)
 
तड़पती हूँ दिन रैन
सिर्फ तुम्हारे लिए
क्यूँ है परवाह
उनकी जो तुम्हारे हैं
रोती हूँ
पर रुलाना नही चाहा
तुम्हारे उन अपनों को
जिन्हें मैंने
अलग ना किया
ना सोचा करूँ
पर मुझे उन्होंने
मेरी आत्मा से ही
जुदा कर दिया
ये भी लगता है
गर तड़पकर
एक आवाज दूँ
तो शायद चले आओगे
तुम मेरे लिए
शायद
पर आजमाया नही
ये जानते हुए भी
कि तुम्हारे अपनों
को वो पीड़ा
हो ही नही सकती
क्यूँकि उनके
या तो एक बेटे हो
या एक भाई, या एक पोते.
प्रीत नहीं, जो मेरे हो....
एक तुम  ही सबकुछ हो
एक रिश्ते में
सारे रूप धारे
साथी, सहारे
सपनों के पिता
पर फिर भी
नहीं माँगा
तुमसे अपना प्यार
बस कहा था
एक कोशिश करो
सच्ची कोशिश
उन्हें छोड़ने की नही
मुझे अपनाने की .
तुम कहते हो
नफरत है मुझे
हाँ है
अथाह
नफरत है मुझे
अपने आप से
उस एहसास से
जो पल गया भीतर
जो सालता है
हर पल, हर जगह
जो फूल खिला गए
तुम मेरे भीतर
कैसे उसे फिर
कली बना दूँ
आता है तुम्हे
तो बता दो
कि फिर भावों को
बंद कली बना दूँ

11.11am, 17/6/2012

5 comments:

  1. करुण, मार्मिक |
    शुभकामनायें ||

    कैसा अंतर्द्वंद यह, कैसा यह संताप |
    चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप |
    पर रहती चुपचाप, अश्रु-धारा को धारा |
    रही रास्ता नाप, पुकारी नहीं दुबारा |
    प्रीति नहीं अपनाय, गुजारिश ठुकराते हो |
    पोता भाई पुत्र, इन्हें ही अपनाते हो |

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..वाह

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  3. बहुत सुन्दर
    एहसास के ये स्वर क्यों हैं?

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  4. सच है अपनाने के लिए किसी कों छोड़ने कों जरूरत नहीं हिती ... न ही मांग होती है ... बार दिल में जगह देने की जरूरत होती है ...

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