जग को क्या मुझे ही न पता चला
डालता रहा जो वक़्त धृत निरंतर
पलता रहा विश्वास मेरे मन अंतर
बोलों पर तेरे न संदेह कभी किया
संग तेरे हर पल सत्य मानकर जिया
मान तेरे भावों का सदा रखना चाहा
जो कहा तुमने, किया, चाहा-अनचाहा
वचनों को पुष्प, नेह को चांदनी माना
न छुपाया कोई राज, ना सच ही अपना
पर तुम क्यूँ, तुम न रह सके
क्यूँ वो सच मुझसे न कह सके
ओह ये क्या कर गए दिल पर जुल्म
आह मिटा गए अपनी छवि स्वयं तुम
जानकर भी क्यूँ, मानती नहीं प्रीत मेरी
वो नेह, वो चाहत की बातें न थी सच तेरी
1.04pm, 19/1/2012
मन के बेहतरीन उदगार !
ReplyDeleteसादर
well said.
ReplyDeleteI LOVE IT
ReplyDeleteबोलों पर तेरे न संदेह कभी किया
ReplyDeleteसंग तेरे हर पल सत्य मानकर जिया
मान तेरे भावों का सदा रखना चाहा
जो कहा तुमने, किया, चाहा-अनचाहा
वचनों को पुष्प, नेह को चांदनी माना
न छुपाया कोई राज, ना सच ही अपना....bahut achchha