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Wednesday, January 11, 2012

प्रीत की रीत


प्रीत   की  रीत  क्या  सच, जाने  ना  कोई 
या  जान  कर  भी  अनजान, है  बने  कोई


नहीं  ये  रूप  का  बाह्य  अवलोकन  है
ये  नैन-मार्ग से  आत्मा  का  दर्शन  है
नहीं  मात्र ये  काया  का  मिलन  परवाने
ये  तो  है  मन का मन  से  मिलन  दीवाने

नैनों  से  दिखेगा  तुझे  बस  प्रीतम  का  तन 
निश्छल  हृदय-चक्षु  खोल  दिखेगा पावन  मन
नहीं  ये  सुख  प्राप्ति  के  लिए  हाथ  का  थामना
नेह  है  मन  के  डिगते  हुए  क़दमों  को  संभालना

प्रेम  का  सच्चा मार्ग  जानना  चाहते  जो  प्यारे
ले  जाओ  अपना  निष्पाप  मन  प्रीतम  के  द्वारे

3.40pm, 11jan, 2012

10 comments:

  1. प्रेम का सच्चा मार्ग जानना चाहते जो प्यारे
    ले जाओ अपना निष्पाप मन प्रीतम के द्वारे

    आपकी अनुपम प्रस्तुति पढकर मन अभिभूत
    हो गया है,प्रीति जी.

    प्रीत की रीत को बहुत सुन्दर प्रकार से
    अभिव्यक्त किया है आपने.

    भक्तिपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार.

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  2. प्रीत पूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार.

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  3. आपको लोहड़ी की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
    ----------------------------
    कल 13/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. सुन्दर और स्पष्ट भाव बहुत ही सुन्दर और सार्थक कविता

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  5. एक अच्छे भाव की सफल प्रस्तुति - सुन्दर
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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  6. bahut sundr bhakti aut preeti si saji abhar

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  7. प्रीत की रीत क्या सच, जाने ना कोई
    या जान कर भी अनजान, है बने कोई ||
    अतिमोहक पोस्ट है ,प्रीत की रीत सभी जानते हैं पर उसे निभाना बेहद कठिन है ये भी मानते हैं|

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आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.