प्रीत की रीत क्या सच, जाने ना कोई
या जान कर भी अनजान, है बने कोई
नहीं ये रूप का बाह्य अवलोकन है
ये नैन-मार्ग से आत्मा का दर्शन है
नहीं मात्र ये काया का मिलन परवाने
ये तो है मन का मन से मिलन दीवाने
नैनों से दिखेगा तुझे बस प्रीतम का तन
निश्छल हृदय-चक्षु खोल दिखेगा पावन मन
नहीं ये सुख प्राप्ति के लिए हाथ का थामना
नेह है मन के डिगते हुए क़दमों को संभालना
प्रेम का सच्चा मार्ग जानना चाहते जो प्यारे
ले जाओ अपना निष्पाप मन प्रीतम के द्वारे
3.40pm, 11jan, 2012
प्रेम का सच्चा मार्ग जानना चाहते जो प्यारे
ReplyDeleteले जाओ अपना निष्पाप मन प्रीतम के द्वारे
आपकी अनुपम प्रस्तुति पढकर मन अभिभूत
हो गया है,प्रीति जी.
प्रीत की रीत को बहुत सुन्दर प्रकार से
अभिव्यक्त किया है आपने.
भक्तिपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार.
प्रीत पूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार.
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
आपको लोहड़ी की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
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कल 13/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत बढिया
सुन्दर और स्पष्ट भाव बहुत ही सुन्दर और सार्थक कविता
ReplyDeleteएक अच्छे भाव की सफल प्रस्तुति - सुन्दर
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
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bahut sundr bhakti aut preeti si saji abhar
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रीत की रीत क्या सच, जाने ना कोई
ReplyDeleteया जान कर भी अनजान, है बने कोई ||
अतिमोहक पोस्ट है ,प्रीत की रीत सभी जानते हैं पर उसे निभाना बेहद कठिन है ये भी मानते हैं|