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Saturday, January 14, 2012

आईने की रंगत


मैं ना बदली भले ये दुनिया बदल गयी

मेरे दिए फूल की काया, भले सूख गयी
पर उनकी रूह की तड़प, जानो, वहीं रह गयी

हवाओं में भला खुशबू अब कैसे तुम्हे मिले वही
उनमें मेरे आंसुओं की नमी घुलकर समा गयी

आइना भी रोता है अब तो देखो दरस को मेरी
मैंने सँवरना क्या छोड़ा उसकी रंगत बदल गयी


 

13 comments:

  1. बहुत सुन्‍दर पंक्तियां.

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  2. आइना भी रोता है अब तो देखो दरस को मेरी
    मैंने सँवरना क्या छोड़ा उसकी रंगत बदल गयी

    आईने का रोना और उसकी रंगत बदलना
    बहुत कुछ कह रहा है.आपकी प्रस्तुति
    मार्मिक और हृदयस्पर्शी लगी.

    भावुक प्रस्तुति के लिए आभार,

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  3. बहुत खूब प्रीत
    तुम ही हो जो इतना मर्म के साथ लिख सकती हो
    मन को मन सा पड़ने मिला
    तुम्हारा धन्यवाद

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  4. मेरे ब्लॉग पर आईयेगा प्रीति जी.
    नई पोस्ट आज ही जारी की है.
    आपके सुवचन मेरा उत्साहवर्धन करते हैं.

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  5. बहुत सुन्दर..
    like it!!!!

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  6. बहुत ही सुन्दर भावो को संजोया है

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  7. kam panktiyon me kafi kuch kaha aap ne....saarthk post, bdhai....pahli baar aap ke blog par aana hua,fir aana hoga,aap ko rachnaye mujhe avashy yhan bola legin is ummid ke sath ....alvida...

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  8. आइना हमेशा सच दिखाता,..
    बहुत सार्थक अभिव्यक्ति सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट....
    new post...वाह रे मंहगाई...

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  9. बहुत सुंदर कविता। मन को छू गयी । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  10. बहुत खूब प्रीति जी ,,
    कम शब्द गहरे भाव ...

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  11. बहुत खूब प्रीति जी!


    सादर

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Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.