मुझे जनम दो माँ
जब तुम मुस्कराती हो, मुझे भीतर भी छू जाती हो
वैसी मुस्कान अपने होठों पर सजाना चाहती हूँ
तुम्हारे होंठ गुनगुनाते हैं, प्रकृति की सुन्दर छवि बनाते हैं
उस छवि को नयनों में भर गुनगुनाना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ
तुम थक जाती हो, स्नेहवश कर्म करती जाती हो
वैसी कर्मठता अपने में झलकाना चाहती हूँ
महसूस किया तुम पर जुल्म होता, पर तुम हो सहनशील माता
सहनशीलता कमजोरी नहीं, मन की ताकत है दिखाना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ
लक्ष्मीबाई हुई यहाँ, इन्दिरा, कल्पना जैसी कई खिली यहाँ
मैं भी ऐसी एक कली बन खिलना चाहती हूँ
आँखों से अश्रु पोंछने हैं, सुना है अभी कई अन्धेरे कोने हैं
उजाले की किरण बन रोशनी बिखेरना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ
सुनती हूँ तुम हो, मन से ही नही रूप से सुन्दरी हो
वैसा ही हृदय-रूप धर, धरा पर महकना चाहती हूँ
पिता हर्षित हो मुस्काते हैं, भाई पर गौरांवित हो
वैसा ही गर्व उन्हें दे, मुस्कान लेना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ
मैं भी इक दिन एक महकती कली का सृजन करना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ
जब तुम मुस्कराती हो, मुझे भीतर भी छू जाती हो
वैसी मुस्कान अपने होठों पर सजाना चाहती हूँ
तुम्हारे होंठ गुनगुनाते हैं, प्रकृति की सुन्दर छवि बनाते हैं
उस छवि को नयनों में भर गुनगुनाना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ
तुम थक जाती हो, स्नेहवश कर्म करती जाती हो
वैसी कर्मठता अपने में झलकाना चाहती हूँ
महसूस किया तुम पर जुल्म होता, पर तुम हो सहनशील माता
सहनशीलता कमजोरी नहीं, मन की ताकत है दिखाना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ
लक्ष्मीबाई हुई यहाँ, इन्दिरा, कल्पना जैसी कई खिली यहाँ
मैं भी ऐसी एक कली बन खिलना चाहती हूँ
आँखों से अश्रु पोंछने हैं, सुना है अभी कई अन्धेरे कोने हैं
उजाले की किरण बन रोशनी बिखेरना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ
सुनती हूँ तुम हो, मन से ही नही रूप से सुन्दरी हो
वैसा ही हृदय-रूप धर, धरा पर महकना चाहती हूँ
पिता हर्षित हो मुस्काते हैं, भाई पर गौरांवित हो
वैसा ही गर्व उन्हें दे, मुस्कान लेना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ
मैं भी इक दिन एक महकती कली का सृजन करना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ
सहनशीलता कमजोरी नहीं, मन की ताकत है.
ReplyDeletebeautiful poem and what a deep sense ......really excellent
सुनती हूँ तुम हो, मन से ही नही रूप से सुन्दरी हो
ReplyDeleteवैसा ही हृदय-रूप धर, धरा पर महकना चाहती हूँ
पिता हर्षित हो मुस्काते हैं, भाई पर गौरांवित हो
वैसा ही गर्व उन्हें दे, मुस्कान लेना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ
मैं भी इक दिन एक महकती कली का सृजन करना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ ...very nice ..hriday sprshi rachna
Well done ! good poetry ! You did better by writing on birth of a baby girl from both angles. To be or not to be. India needs writers like you. I suggest write some articles like India needs a Young Mahatma Gandhi again. Poetry is good for you but prose is needed to change this country. We need a Young Mahatma Gandhi to build 'a national character' without which India can not survive long. I hope to see one such Young Man or Woman in near future.
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