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Thursday, February 11, 2010

कैसे निशब्द बुलाऊँ


क्यों आते हो मेरे पास, जीवन की आस लिए
जब किये है मेरी साँस, अंत का वरण किये

छाया है पतझड़ अनंत, अब छाया कैसे करूँ
कोंपल बिन शाख ना जिवंत, फलपात्र कैसे भरूँ

श्वेत मेघ सा निष्फल भटकन, जलवृष्टि कैसे सोचूं

बंजर बनी मैं धरती, कण-कण, हरयाली को कैसे सोचूं

त्याग गए तुम, स्वयं, खिवैया, पार किसी को क्या लगाऊँ
स्व को तुमने बहरा किया, फिर कैसे निशब्द बुलाऊँ

बगिया, बन गई जब वन, क्या किसी को राह सुझाऊँ
पानी सा बह गया जीवन, क्या जीवन-दर्शन समझाऊँ
12:23 a.m., 23 jan, 10

3 comments:

  1. I Dont know why enven if someone is unwanted still come so close. Do you know ??

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  2. every couplet has a deep meaning. loved the way you touched the nature. keep writing.

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  3. त्याग गए तुम, स्वयं, खिवैया, पार किसी को क्या लगाऊँ
    स्व को तुमने बहरा किया, फिर कैसे निशब्द बुलाऊँ

    बगिया, बन गई जब वन, क्या किसी को राह सुझाऊँ
    पानी सा बह गया जीवन, क्या जीवन-दर्शन समझाऊँ

    bahut acchi panktiyaan hain priti ji

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