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Saturday, May 25, 2013

pagli पगली


ज्यादा  नहीं  कहती  बस  इतना  ही  कि 
क्या करूँ तुम्हे  भूलना  सीखा  नहीं  अभी

7.04 pm, 23/5/13

हवा ने जो जरा सा रुख बदला
हमें लगा बहार का मौसम आया
झरोखों से देखा जो पलकें खोल
लगा यूँ ही गया था बांवरा मन डोल
लगा था हो गए हो दीवाने तुम
पर पता चला सच ही, मैं पगली हूँ

2.14pm, 24/5/13

6 comments:

  1. खुबसूरत अहसास और अभिव्यक्ति
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post: बादल तू जल्दी आना रे!
    latest postअनुभूति : विविधा

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.

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  3. वाह .. खुद प्रेम में पागल हो तो सभी पागल नज़र आते हैं .. चश्मा जो प्रेम का लगा है ...
    बहुत उम्दा ...

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Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.