ब्लॉग में आपका स्वागत है

हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं .... You are my strength, inspiration :)

Wednesday, May 29, 2013

mukhrit मुखरित


मुखरित  मैं  मिलकर  तुमसे
मुखरित  मेरी  संपूर्ण  सृष्टि  तुमसे
मुखरित  धरा  धानी  चुनर  ओढ़े  हुई
मुखरित  चंचल  चिड़िया  चहचहाईं 

झंकृत  हृदय  हृद्गत  हुआ  तुमसे
झंकृत  पायल  प्रफुल्ल  पांवों  में
झंकृत  झड़ी  झमझमाती  झड़ी
झंकृत  झींगुर  झांयझांय  भी  लगी

हर्षित  मन  में  मनहर  मधुरता 
हर्षित  मुख  मधुसंकाश  मनकरा 
हर्षित  झूमे  तरु  तटिनी  तट  पर
हर्षित  भ्रमर  भौंराए  भौम्यपुष्प पर

पल्लवित  हरियाली  हरे  हृदयाग्नि  को
पल्लवित  पद्मिनी  पुकारे  पद्म्बंधू  को
पल्लवित  पुष्प  पत्रों  से  पंथी  पंथ
पल्लवित  सुंदर  सपने  सारे संगी  संग

मुखरित  स्वर  से  सुर  झंकृत
झंकृत  वाणी  विहसित  हर्षित
हर्षित  हो हृदयपुष्प  पल्लवित
पल्लवित  जीवन  जीव  मुखरित
4.01pm, 8/4/2013


18 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (३०-०५-२०१३) को "ब्लॉग प्रसारण-११" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

    ReplyDelete
  2. अनुप्रास अलंकार से सजी सुन्दर रचना !
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को

    अनुभूति : विविधा -2

    ReplyDelete
  3. अलंकारों सजित ... लाजवाब रचना ...

    ReplyDelete
  4. sundar kavita,
    मेरे ब्लॉगपर भी आयें। पसंद आने पर शामिल होकर अपना स्नेह अवश्य दें।

    ReplyDelete
  5. मुखरित, झंकृत,हर्षित , पल्लवित,.. क्या बात है सुन्दर शब्द संयोजन !

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर शब्द चयन से अलंकृत करती सुगढ़ प्रस्तुति

    ReplyDelete
  7. भावों को शब्दों में बाधने का अनुपम प्रयास. बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिये.

    ReplyDelete
  8. मन के भावों को चमत्कृत कर देने वाले शब्द दिये है
    वाह अदभुत
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
    सादर

    आग्रह है पढें,ब्लॉग का अनुसरण करें
    तपती गरमी जेठ मास में---
    http://jyoti-khare.blogspot.in

    ReplyDelete
  9. sundar bhav....behatar rachna...

    ReplyDelete
  10. मुखरित हुआ प्यार
    आलोकित हुआ मन आकाश
    लो फिर लौट आया मधुमास
    आल्हादित हुआ ह्रदय
    पल्लव की हथेलियों पर
    रच कर मेहंदी
    कर रहा मौसम प्रणय का प्रसार
    चाँद की परछाई चुराकर
    नीरव निशा मे
    लहरे कर रही हैं अभिसार
    सुनकर मधुप का गुंजन
    कलियों की चेतना में छाया हैं उल्लास
    देह मेरी आज फिर हुई बांसुरी
    सांस तुम्हारी फूंक रही मुझमे प्राण
    खिल उठे उमंग के पंकज
    जड़ों मे उनके
    भर आया हैं रस अनुराग
    चाहता मन उसके अंग अंग को कर दू
    इन्द्रधनुष के सातों रंग से सरोबार
    मुखरित हुआ प्यार
    आलोकित हुआ मन आकाश
    लो फिर लौट आया मधुमास
    किशोर

    ReplyDelete
  11. भावपूर्ण शब्द .. अलंकृत प्रवाह ...
    मनमोहक रचना ...

    ReplyDelete
  12. bahut sundar shabdoN ka priyog kiya hai ...bandhai swikaren

    ReplyDelete
  13. शब्दों का अनुपम प्रयोग अलंकारों की अदभुत छटा.

    बेहतरीन प्रस्तुति. बधाई.

    ReplyDelete
  14. अनुपम भावोँ को लिए हुए अति सुन्दर रचना । बधाई । सस्नेह

    ReplyDelete



  15. वाह ! वाऽह…! वाऽहऽऽ…!
    कविता में अनुप्रास की छटा देखते ही बनती है ।
    आदरणीया प्रीति स्नेह जी

    बहुत ख़ूब !
    आपकी हिंदी और अंग्रेज़ी कविताएं प्रभावित करती हैं...


    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...

    ♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  16. बहुत खूब , सुन्दर चित्रांकन
    कभी यहाँ भी पधारें

    ReplyDelete

Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.