संग मुस्कान लाए
पलकों में हँसी जो लाए
कई कोहिनूर झिलमिलाए
पूरब की लाली गालों पर छाई
चांदनी देहयौवन में समाई
चंचलता, पवन की, चाल में आई
उज्ज्वलता आकर रूह में समाई
कोयल सी कूक उठी मेरी बोली
आम्ररस में ज्यों हो घोली
मन आँगन में तितलियाँ डोली
फूलों में डूब मदमस्त हो ली
उड़ चली मैं पंख फैलाए
धरती-अम्बर मुझ में समाए
बहारें सजाए
तुम जो आए
6:17p.m., 17feb,10
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (05-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
बहुत बढ़िया ।बधाई आदरेया
ReplyDeleteबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
ReplyDeleteतुम जो आये है खिला, मन का ये संसार ।
ReplyDeleteचहक रहा है अंग-अंग, आया है बहार ।।
पूरब की लाली गालों पर छाई
ReplyDeleteचांदनी देहयौवन में समाई
चंचलता, पवन की, चाल में आई
उज्ज्वलता आकर रूह में समाई
हर्षित मन के गगन पर सुंदर इंद्रधनुषी भाव.....
बहुत प्यारी रचना....
ReplyDeleteकोयल सी कूक उठी मेरी बोली
आम्ररस में ज्यों हो घोली
मन आँगन में तितलियाँ डोली
फूलों में डूब मदमस्त हो ली
बहुत खूब...
अनु
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
खुबसुरत रचना.
ReplyDeleteसादर.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteबहुत खूब !तुम जो आये .सब सावन आये .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteउड़ चली मैं पंख फैलाए
ReplyDeleteधरती-अम्बर मुझ में समाए
बहारें सजाए
तुम जो आए...खुबसूरत अभिवयक्ति.....