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Sunday, December 13, 2009

तुम जो गए tum jo gaye

बरसों, बीते, तुम जो गए
सदियाँ जी ली
जोगन हो ली

नयन झुके, कजरा बहा
केश खुले, गजरा ढला
कानों में चुभती, चूड़ी की खनक
पैरों को डसती, पायल की ललक

क्या सोलह श्रृंगार
क्या तन का विचार
क्या सुनूँ मै आहट
अब कैसी मुस्कराहट

नित्य वो आई, लिए, तारों की चुनर
वो आये, लिए, तम भेदने का हुनर
फूल मुस्काए, कुम्हलाये

दीप, बुझने को टिमटिमाये

कई सावन बरसे, आँगन रहा सूखा-सा
कोंपल तो फूटे, पर, बसंत रहा रुखा-सा
हेमंत ने ठिठुरन भरी, ग्रीष्म ने फैलाई बाहें

मेरे दर तक पहुंची, बस, पतझड़ की राहें

पलकों में स्वप्न आये, रैन बीत गए
तुमसे जो बिछुड़े, होठों से गीत गए
कितनी बार धान रोंपी, फसलें कटी
पल के सहेस्रों टुकड़ों में , मै बँटी

जोगन हो ली
सदियाँ जी ली
अभी दो पल ही तो बीते तुम्हे गए

9:43 pm, 12 dec,09

5 comments:

  1. कई सावन बरसे, आँगन रहा सूखा-सा
    कोंपल तो फूटे, पर, बसंत रहा रुखा-सा
    हेमंत ने ठिठुरन भरी, ग्रीष्म ने फैलाई बाहें
    मेरे दर तक पहुंची, बस, पतझड़ की राहें
    .........................
    ..........................
    i felt.............
    sunder rachna........

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  2. Bahut sundar......

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  3. जोगन हो ली
    सदियाँ जी ली
    अभी दो पल ही तो बीते तुम्हे गए..do pal me hi sadiyon tak ke virah ka ahsaas ..bahut khub

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  4. is giit me lay bhi hai ,gaa bhi sakte hai ..is kavita ke shbdon ko dhun me piron bhi sakte hain ...DUBAARA PADH RAHAA HUN ..aur tumhari lekhni ke jaadu se hatprbh bhi hun ...PRITI JI bahut badhaaii ..

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