तुम मेरे साथ चले आए
तुम्हारा स्नेह, मधुर वचन
वो प्रागाढ़ चिंतन
मुझे स्मरण है
नैनों की भाषा
स्नेह स्पर्श
संदेह से आलिंगन
मन कचोटता है
तुम्हरी आस
मेरा विश्वास
होगा सस्नेह
मिलन ढाढस बंधाता है
तुमसे अलग हो
मैं चली तो आई
बस मैं ही आई
आत्म तुम्हें दे आई
तुम चले तो गए
लौटने का वादा कर गए
पर
सच
तुम मेरे साथ चले आए
Prritiy ji bahut sunder rachna, dil se likhi gayi hai .......aapko bahut bahut badhai
ReplyDeleteTuesday, December 1, 2009
ReplyDeleteतुम साथ चले आए-tum saath chale aaye
तुम मेरे साथ चले आए
तुम्हारा स्नेह, मधुर वचन
वो प्रागाढ़ चिंतन
मुझे स्मरण है
नैनों की भाषा
स्नेह स्पर्श
संदेह से आलिंगन
मन कचोटता है
तुम्हरी आस
मेरा विश्वास
होगा सस्नेह
मिलन ढाढस बंधाता है
तुमसे अलग हो
मैं चली तो आई
बस मैं ही आई
आत्म तुम्हें दे आई
तुम चले तो गए
लौटने का वादा कर गए
पर
सच
तुम मेरे साथ चले आए....वाह ,बहुत ही सुन्दर ..आपकी कविताओं की जितनी तारीफ की जाए उतना ही कम है ,..प्रकृति के सौन्दर्य से आप भी अभिभूत हैं ,अपने ह्रदय के प्रेम को उनके माध्यम से आप अभ्यक्त करती हैं ,पर्वतों ,जंगलों ,झरनों ,फूलों ,की तरह स्त्री और पुरुष भी इसी प्रकृति के अंग है ,
इसलिए उनसे भी हम आकर्षित होते हैं ,लेकिन नदी ,सूरज ,चाँद की तरह वे भी हमसे दूर ही होते है
यह संसार झील में उतर आये चन्द्रमा की तरह हमारी पकड़ से बहार है ,खूबसूरती से हम आनंदित हो सकते है ,लेकिन यहाँ ..जैसे भगवान् ने कह दिया हो .." पुष्पों को छूना मन हैं ,और तोड़ना तो शक्त मना हैं ' ऐसी परिस्थिति में अपने उदगारों को आप कविता के माध्यम से प्रस्तुत करने में पूर्णत: सक्षम एवं सफल है ...किशोर ...