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हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

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Tuesday, September 2, 2014

chale aao, chale aao चले आओ चले आओ



बहुत बुरा लगता है जब कोई कहता है तुमने दगा दिया
तुम आकर मेरे साथ चलकर जाता दो संग हो, नही दिया

12.59 am, 31 aug, 14

आज भी तेरी आँखों को देख याद करती हूँ
कहा करती थी तुझसे भूरी आँखों वाले दगा देते हैं
तुम कहते थे मेरी आँखें भूरी नही हैं
तो फिर तुम क्यों मुझसे रूठकर दूर चले गए

11.55pm, 30 aug, 14

तुझसे गहरी प्रीत ने यह देखो क्या रंग दिखाया है
मेरी बदरंग चूनर देख जग ने चुनरी का ढेर लगाया है
कहते हैं बदल डालो कि ये चूनर का रंग फीका हो चला
कैसे कहूँ मुझे प्यारी है, उसके नेह में है आंसुओं से धुला

12.11 am, 30 aug, 14

हमने तो कहा था उन्हें हम ही बुरे हैं
अपनी खूबियों का पर्दा हम पर डाल दो

5.29pm, 26 aug, 14

आज फिर बातों ही बातों में तेरा नाम आ गया
मेरे नयन वर्षा के पश्चात पत्तों से झिलमिला उठे 

11.40 am, 22 aug, 14

कहते हो तुम्हे नही था प्यार मुझसे
यही है कहा तुमने भी फिर-फिर मुझसे
जानती हूँ सब झूठ हैं ये तुम्हारी बातें
सपनों में नही थी वो हमारी मुलाकातें

 6.23 pm, 31 july, 14

4 comments:

Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.