तुम जी लिए बिन मेरे
मिटा दिए शब्दों के घेरे
मैं अग्नि सा तपता रहा
बस दूर से तकता रहा
जिस गली हुई आँख नम
उस गली से मुड़ लिया
किस नगर अब जायें हम
हर गली से है मोड़ लिया
तुमने कहा कुछ नही बदला
क्या सच नहीं है बदला
है याद कहो कितनी चाँद रात रहे मुझ बिन
हरी चरणों में किये अर्पित कुसुम, गिने
दिन
अब लौटूं भी तो कहाँ
मुझपर बंद द्वार किये वहां
तुमने कहा है यहाँ-वहां
शांति
हूँ मौन दे दी तुम्हे तुम्हारी
शांति
अब न सतायेंगे तुम्हे
मेरे सवाल
न खोजने पड़ेंगे हृदय में जवाब
मेरे नम नैन न करेंगे कोई बवाल
हो खुश कभी न होंगे सवाल-जवाब
मैंने जो खोया-पाया था मेरा किया
नेह भरा दिल क्यूँकर
तुमको दिया
जिम्मेदार मैं ही हूँ सच कहा तुमने
नेह पुष्प कुचला अच्छा किया
तुमने
11.36am, 23/4/13
-प्रबाव शाली रचना
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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drd se bhari huii ek kavita ..hriday sprshi ..
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावशाली प्रस्तुति.
ReplyDeleteअपने किये को खुद ही निभाना होता है ..
ReplyDeleteदमदार रचना है ...
आज के दिन कुछ ज़्यादा ही निराशावादी नहीं लिख दिया आपने ?
ReplyDeleteवैसे बहुत ही मर्मस्पर्शी लिखा है।
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सादर
शुभकामनाओं के लिए आभार
Deleteदमदार रचना बहुत अच्छी
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