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Sunday, December 23, 2012

MUJHE NA DO JANM MA - मुझे ना दो जन्म माँ


एक बार लिखा था - मुझे जन्म दो माँ - http://prritiy.blogspot.in/2010/02/mujhe-janm-do-maa.html .... लेकिन अब चीत्कार रही है बिटिया 

मुझे  ना  दो  जन्म  माँ
ये  दुनिया  नोच  लेगी  माँ
नहीं  सुरक्षित  हूँ  यहाँ
किसी  भी  अवस्था  में  माँ

छीन  लेते  हैं  मेरा  बालपन
भेड़िये  से  बुरे, नोचते  यौवन
कचोटते,  हो  चाहे  जर्जर  तन
यह-वह  कोई  भी  हो  आँगन

माँ, नहीं  वो  जंगल  का  भूखा  शेर
ना  ही कोई  गिद्ध  उतरा  तेरी  मुंडेर
न  जलचर,  नभचर  न  कंटीली  बेर
हाँ  तेरे  ही  बेटों  ने  किया  ये  अंधेर

पिता  की  छाया  हुई  असुरक्षित
भाई  ने  ही  किया  संग  कलंकित
सखा  ने  मैत्री  डोर  की  दूषित
तेरी  पुत्री  है  डरी, सहमी  कम्पित

हूँ  मैं  भोग्या  देह  यहाँ
आत्मा  का  मेरी  मोल  कहाँ
नहीं  जीते  जी  मरना  माँ
मुझे  ना  दो  जन्म  माँ

11.28pm 22/12/12

6 comments:

  1. "नहीं वो जंगल का भूखा शेर
    ना ही कोई गिद्ध उतरा तेरी मुंडेर
    न जलचर, नभचर न कंटीली बेर
    हाँ तेरे ही बेटों ने किया ये अंधेर"

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  2. सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !

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  3. पिता की छाया हुई असुरक्षित
    भाई ने ही किया संग कलंकित
    सखा ने मैत्री डोर की दूषित
    तेरी पुत्री है डरी, सहमी कम्पित

    हूँ मैं भोग्या देह यहाँ
    आत्मा का मेरी मोल कहाँ
    नहीं जीते जी मरना माँ
    मुझे ना दो जन्म माँ

    ReplyDelete
  4. पुरुष होने पे लजा आती है ... आज बेटियों को ऐसा लिखा पड़ रहा है ...
    सामयिक रचना ...

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  5. ♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
    ♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
    ♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




    हूँ मैं भोग्या देह यहाँ
    आत्मा का मेरी मोल कहाँ

    आऽह !
    हे भगवान ! क्या हो गया है संसार को ?

    आदरणीया प्रीति स्नेह जी
    देखते-सुनते तो हैं चारों ओर यही हो रहा है...
    हालांकि सभी को एक ही तकड़ी में नहीं तौला जा सकता ।


    मैंने एक गीत में कहा है -
    औरत को खेती कहने वालों ! शर्म करो तुम डूब मरो !
    मां पत्नी बेटी बहन देवियां हैं ; चरणों पर शीश धरो !!
    अब यह कोई भी ना समझे , कि ‘नारी पुरुष की जूती है’
    हम धूल नहीं पैरों की ऊंचे चांद-सितारे छूती हैं !!

    समय मिले तो यह लिंक देख लीजिएगा ।

    मेरी ताज़ा पोस्ट पर तो पधारिएगा ही ...
    :)

    आपकी लेखनी से सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन हो …
    नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार
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आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.