ब्लॉग में आपका स्वागत है

हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं .... You are my strength, inspiration :)

Wednesday, May 23, 2012

मैंने तो बस यूँ ही



ये मेरी दूसरी रचना "तुम कहो" के लिए दिया गया स्वयं का उत्तर है ---

तुम  मुझे  कोई  जवाब    देना 
अपने  भाव  शब्दों  में  ना  ढालना 
प्रश्नों  के  जाल  में  उलझे  हुए  हो 
सच  की  सच्चाई  से  डरे  हुए  हो 
क्या, कैसे  हुआ, सोच  सब  बंद  है 
दिल  दिमाग  में  चल  रहा  द्वंद्व  है 

तुम  स्वयं  को  परेशान    करना 
अपने  सच  का  सामना    करना 
नेह-पंखुड़ियों  को  कसकर जब  भींचे  हुए  हो 
क्यूँ  अधखुला  देखने  की  सोच  लिए  हुए  हो  
प्रीत  और  स्वयं  का  सत्य  तुम्हे  ज्ञात  है 
जग  के  पाश  खोलना, ना  बस  की  बात  है 

मैंने  तो  बस  यूँ  ही  तुमसे  पूछ  लिया  था 
आँधियों  में  सोच  का  दिया  जला  लिया  था 



12.12pm, 16/5/2012

15 comments:

  1. मैंने तो बस यूँ ही तुमसे पूछ लिया था
    आँधियों में सोच का दिया जला लिया था

    purkashish bhaav

    ReplyDelete
  2. बहुत ही बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग

    विचार बोध
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    ReplyDelete
  3. मन के भीतर चल रहे अन्तर्द्वन्द्व का बहुत ही सुन्दर चित्रण
    आभार

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  5. यूँ ही पूछ लिया था , जवाब का इंतज़ार भी नहीं है !
    लिखा कुछ है , शब्द कुछ और कह रहे हैं :)

    ReplyDelete
  6. आँधियों में सोच का दिया जला लिया था'
    आँधियों में सोच का जब दिया जलता है, यकीं मानिए तब ही तो पत्थर भी पिघलता है

    ReplyDelete
  7. मैंने तो बस यूँ ही तुमसे पूछ लिया था
    आँधियों में सोच का दिया जला लिया था ..

    sundar bhav-purn rachna

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना अंतिम पंक्तियाँ बहुत प्रभावित करती हैं keep writing best wishes.

    ReplyDelete
  9. वाह ..बहुत खूब

    ReplyDelete
  10. ‘तुम कहो’ के साथ यह भी एक सुंदर रचना....
    हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  11. बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    ReplyDelete
  12. प्रीत और स्वयं का सत्य तुम्हे ज्ञात है
    जग के पाश खोलना, ना बस की बात है
    kisi ka achchha lagna bas yahi sukhad ahsaas ..jine ka sahaara ho jaataa hai

    bhitar koi man me hai par bahar vah ojhal hai ...

    yahi kasak ya pidaa kavita likhvati hai ..bahut bahut khub

    ReplyDelete

Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.