तुम मुझे कोई जवाब न देना
अपने भाव शब्दों में ना ढालना
प्रश्नों के जाल में उलझे हुए हो
सच की सच्चाई से डरे हुए हो
क्या, कैसे
हुआ, सोच सब बंद है
दिल दिमाग में चल रहा द्वंद्व है
तुम स्वयं को परेशान न करना
अपने सच का सामना न करना
नेह-पंखुड़ियों
को
कसकर जब भींचे हुए हो
क्यूँ अधखुला देखने की सोच लिए हुए हो
प्रीत और स्वयं का सत्य तुम्हे ज्ञात है
जग के पाश खोलना, ना
बस
की
बात
है
मैंने तो बस यूँ ही तुमसे पूछ लिया था
आँधियों में सोच का दिया जला लिया था
12.12pm, 16/5/2012
मैंने तो बस यूँ ही तुमसे पूछ लिया था
ReplyDeleteआँधियों में सोच का दिया जला लिया था
purkashish bhaav
बहुत ही बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग
विचार बोध पर आपका हार्दिक स्वागत है।
Bahut Sundar Priti Ji.
ReplyDeleteमन के भीतर चल रहे अन्तर्द्वन्द्व का बहुत ही सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteआभार
Bahut hi khubsurat rachna.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteयूँ ही पूछ लिया था , जवाब का इंतज़ार भी नहीं है !
ReplyDeleteलिखा कुछ है , शब्द कुछ और कह रहे हैं :)
आँधियों में सोच का दिया जला लिया था'
ReplyDeleteआँधियों में सोच का जब दिया जलता है, यकीं मानिए तब ही तो पत्थर भी पिघलता है
मैंने तो बस यूँ ही तुमसे पूछ लिया था
ReplyDeleteआँधियों में सोच का दिया जला लिया था ..
sundar bhav-purn rachna
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना अंतिम पंक्तियाँ बहुत प्रभावित करती हैं keep writing best wishes.
ReplyDeleteवाह ..बहुत खूब
ReplyDeletebahut sundar bhav
ReplyDelete‘तुम कहो’ के साथ यह भी एक सुंदर रचना....
ReplyDeleteहार्दिक बधाई।
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
प्रीत और स्वयं का सत्य तुम्हे ज्ञात है
ReplyDeleteजग के पाश खोलना, ना बस की बात है
kisi ka achchha lagna bas yahi sukhad ahsaas ..jine ka sahaara ho jaataa hai
bhitar koi man me hai par bahar vah ojhal hai ...
yahi kasak ya pidaa kavita likhvati hai ..bahut bahut khub