हुँ मैं जबसे उखडी
रोपा था मुझे जहाँ
बडी तेज हवाएँ हैं
चिलचिलाती धूप है
पाँव जम नही पा रहे
तेरे आँचल के छाँव की शीतलता
माँ मैं कभी समझी नही
आज याद आती है
नही जानती क्यों अपने से दूर किया
मुझसे क्या त्रुटि हुई माँ
मुझे क्या याद करती हो
क्या बाबा भी कहते हैं मिलने को
क्यों कहते थे मेरी आँख का तारा हो
अब समझ आता है जब देखती हूँ टूटते तारे को
माँ मैंने ऐसा क्या किया
मुझे टूटा तारा बना दिया
तेरे आँचल के छाँव की शीतलता
ReplyDeleteमाँ मैं कभी समझी नही
आज याद आती है ..........
thanks i missed the caring of mom....
टूटा तारा...हां हां हां हां ...क्यों प्रति जी तारा ही क्यों टूटता है सूरज और चाँद क्यों नहीं ..क्योकि सूरज चाँद तो बेटे है और तारे बेटियाँ ....हमेशा बेटियाँ ही बिछुड़ती है ..आपकी और हमारी बेटी भी ये ही कहेगी कभी जो आप कह रही हो....नगर उस वक्त हम बहरे हो चुके होंगे...
ReplyDeleteवैसे कविता बहुत अच्छी है ..एक बेटी अपने माँ बाप से सवाल कर रही है क्यों तुने मुझे अपने से दूर किया..
अमीर खुसरो जी की दो लाइन याद आ रही है मुझे इस पर..
भैया को दीने तुने महल दुमहले
हमको दिया परसेश रे
लक्खी बाबुल मेरे
काहे को ब्याही बिदेश रे
लक्खी बाबुल मेरे
छू गयी मन को ये रचना... कोमल भावों से भर दिया है तुमने..
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