अभी दूरी करते हो और, तुम्हारे लिए संकेत भर से ही, छलक जाती हैं मेरी आँखें
तब क्या होगा जब मैं तुम्हारे सदृश ही उपेक्षा करुँगी, चाहे नम होंगी तुम्हारी पलकें
तब क्या होगा जब मैं तुम्हारे सदृश ही उपेक्षा करुँगी, चाहे नम होंगी तुम्हारी पलकें
2.55pm, 30 july, 14
कहते हैं
तुम लौट आओगे
कभी न कभी जरूर आओगे
वो इक दिन क्या तब होगा
आत्म मेरा जड़ हो गया होगा
दिन में ना छटपटाहट होगी
सूनी रातें ना प्रतीक्षारत होगी
नैनों में तुम्हारी छवि न होगी
तुम्हारी स्मृतिबेल हरी न होगी
डरती हूँ उस दिन क्या होगा
तुम्हारा हृदय कैसे वश में होगा
दृष्टि के सामने ही हो आँगन मेरा
पर दूर से हो पाये आलोकन मेरा
ऐसा न हो लौट कर आओ तो
वो न मिले जो देखते आये हो
हो सकता, बंजर तब वो भूमि मिले
फैलें हो हर ओर बस रेत के ही टीले
या फिर हों झाड़ झंखाड़ उगे हुए,
कोई परजीवी मेरे लहू पर जीते हुए,
सघन वृक्ष, कुसुमदल खिले हुए
या सुर्ख लावा जीवन निगलते हुए
मेरे बाग़ में भंवरों की हो गुंजान
आकाश में कई पंछियों की हो उड़ान
मग्न मुझे मनाने तरीके लें आकार
तरसो, तड़पो और मैं दिखूं निर्विकार
कभी न कभी जरूर आओगे
वो इक दिन क्या तब होगा
आत्म मेरा जड़ हो गया होगा
दिन में ना छटपटाहट होगी
सूनी रातें ना प्रतीक्षारत होगी
नैनों में तुम्हारी छवि न होगी
तुम्हारी स्मृतिबेल हरी न होगी
डरती हूँ उस दिन क्या होगा
तुम्हारा हृदय कैसे वश में होगा
दृष्टि के सामने ही हो आँगन मेरा
पर दूर से हो पाये आलोकन मेरा
ऐसा न हो लौट कर आओ तो
वो न मिले जो देखते आये हो
हो सकता, बंजर तब वो भूमि मिले
फैलें हो हर ओर बस रेत के ही टीले
या फिर हों झाड़ झंखाड़ उगे हुए,
कोई परजीवी मेरे लहू पर जीते हुए,
सघन वृक्ष, कुसुमदल खिले हुए
या सुर्ख लावा जीवन निगलते हुए
मेरे बाग़ में भंवरों की हो गुंजान
आकाश में कई पंछियों की हो उड़ान
मग्न मुझे मनाने तरीके लें आकार
तरसो, तड़पो और मैं दिखूं निर्विकार
3.40pm, 30 july, 14
नहीं सोच इस दर्द में भी ये, कि, तुम्हे भी चाहत में वही गम मिले
भूल जाना तुम मेरे दर्द की तरह ये भी कभी थे यूँ राहों में हम मिले
11.00 pm, 30 july, 14
नहीं सोच इस दर्द में भी ये, कि, तुम्हे भी चाहत में वही गम मिले
भूल जाना तुम मेरे दर्द की तरह ये भी कभी थे यूँ राहों में हम मिले
11.00 pm, 30 july, 14
देता है दर्द, ये सोच मात्र कि एक दिन भुला दोगे मुझे तुम
पर पल पल मुझे चीरती बेबसी नहीं चाहती करे तुम्हे भी गुम
पर पल पल मुझे चीरती बेबसी नहीं चाहती करे तुम्हे भी गुम
3.12 pm, 31 july, 14
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
ReplyDeleteबहुत खूब हैं डायरी के ये पन्ने ... दिल की जुबान ...
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