बग़ावत करनी पड़ेगी ये जीने नही देते हैं
ख्याल मेरे जब देखो तुमसे लिपटे रहते हैं
गुनाह किया है
ये अक्सर मैंने
तुमपर लिखा कुछ
तुम्हे ही नही सुनाया
4.40pm, 15 jan
तुमने साथ निभाने
के, हंसी देने की सौं को भले न निभाया
ना मनाने की, दूरी करने की बात को मेरे मितरा खूब निभाया
8.05pm
बीता एक पखवाड़ा
तुम्हे सुने
ना सुना भले पर याद न आते
यूँ सोचों में हरदम न समाये रहते
मानते तुम्हे इस दिल से भी दूरी निभाते
8.15pm
वफ़ा में भले रही जरा सी बेवफाई
बेवफाई तुमने मितरा दिल से निभायी
8.48pm 17jan 2014
वफ़ा में भले रही जरा सी बेवफाई
ReplyDeleteबेवफाई तुमने मितरा दिल से निभायी
बहुत सुन्दर लिखा है !
नई पोस्ट मेरी प्रियतमा आ !
नई पोस्ट मौसम (शीत काल )
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुती....
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ReplyDeleteसभी बहुत उम्दा. यह शेर बहुत पसंद आया...
ReplyDeleteवफ़ा में भले रही जरा सी बेवफाई
बेवफाई तुमने मितरा दिल से निभायी
बधाई प्रीति.
.शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
ReplyDeleteखुबसूरत
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