एक श्रद्धांजलि, उस पीड़िता को, कहते हैं नाम दामिनी था, चमकी और लुप्त हो गई.
पर उसकी चमक को ज्वाला बनाना है, अब चुप नही रहना है.
एक श्रद्धांजलि, कायरता के नाम जो हमने थी ओढ़ी ...
एक आव्हान इंसानों को - जागो, बहुत सो चुके अपनी खोलों में उठो और इंसानियत के लिए लड़ो..
एक आवाज जो न बंद होगी, जब तक हर कोई महफूज़ नही. नहीं पढने, सुनने हैं रोज कि फिर एक बेटी /बहु /माँ -औरत संग ये अन्याय हुआ ....नहीं होने देना है अन्याय ......
जागो युवाओं और अग्रजों जागो , देखो तुम्हारी आँखों के सामने न हो फिर किसी के साथ अनुचित व्यव्हार ......
हम चुप नही रहेंगे .....
हे पुरुषों पौरुष अपना जन कल्याण के लिए दिखाओ .. फिर न कोई माँ हो लज्जित और कहे ...
मैं तुम्हे
बोलना सिखाती हूँ
तुम करते हो मुझको मौन
मैं तुम्हे
जीवन केंद्र बनाती
हूँ
तुम करते हो मुझको गौण
मैंने तुम्हे
चलना सिखाया
तुमने डाली पाँव में जंजीर
वस्त्र धारण तुम्हे सिखाया
तुमने चीर डाले मेरे चीर
साफ़ सफाई सिखाई तुमको
मेरे मुख पर कालिख दी
पोत
मैंने दिया जीवन ये तुमको
तुमने दी पल पल की मौत
2.47pm, 29/12/12