मैंने दिवास्वप्न में प्रीति के दिए जलाये हैं
अबकी बहार को मेरा आँगन सजाना ही है
मनभावन रंगों से स्वप्न रंगोली बनानी है
कि मुस्काए, आहा रंगों से भरा जीवन है
राहों को सुगन्धित पुष्पों से सजाया है
आए वो बहार तो कहे यहीं का हो रहना है
तारों से सजा, उजली उनकी राह करनी है
वो कहें मिट गया मन का सारा अँधियारा है (11.52pm, 15/7/2012)
पत्रों की हरीतिमा को जतन से लगाया है
कि मन सदा कहे जीवन में बसी हरियाली है
स्व को किया उनकी चरणों का आधार है
कि वो सोचें 'प्रीति' बिना कैसे कदम बढ़ाना है
2.44pm, 19/7/2012
बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteसब कुछ इतना प्यारा होगा तो
आपके बिना कदम बढ़ाना तो सोचेंगे भी नहीं..
:-)
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
राहों को सुगन्धित पुष्पों से सजाया है
ReplyDeleteआए वो बहार तो कहे यहीं का हो रहना है ..
काश की बहार के बहाने वो भी आयें ए यहीं के हो के रह जाएँ ... कल्पना में छिपी कल्पना भी तो हो सकती है ...
ji 'vo' bahar 'unke' liye hi kaha hai.
Deleteabhaar
SUPERB POST
ReplyDeleteGreat lines. Thanks for sharing :)
ReplyDeleteस्व को किया उनकी चरणों का आधार है
ReplyDeleteकि वो सोचें 'प्रीति' बिना कैसे कदम बढ़ाना है
bahut badhiyaan ..
स्व को किया उनकी चरणों का आधार है
ReplyDeleteकि वो सोचें 'प्रीति' बिना कैसे कदम बढ़ाना है
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.
स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएँ.
बहुत शानदार ग़ज़ल, शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई
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