तुम जब भी मेरे पास आए
क्यों अपना अधूरापन संग लाये
जो कमी मैंने न महसूस की
वो दंतों से मेरे तन जड़ दी
तुम्हारे स्नेह की कमी अपने दिल में न लाई
पर, गालों पर, तुम्हारे हाथों ने याद दिलाई
बाबुल का घर छोड़ 'हमारे' घर आई
पर तुमने रखा बना मुझे हरदम पराई
तुम्हारे अपनों को हर कदम अपना माना
पर मुझे कर दिया मेरे ही बाबुल से बेगाना
मेरे सपने तुमसे अथः और इति होते
तुम्हारे बातों, आहों में गैर के चर्चे होते
तुम्हारा अधूरापन मुझे कभी नजर न आया
मेरे हर पग में तुमने केवल अधूरापन पाया
तुम्हारे अधूरेपन की सजा है मैंने यूँ पाई
तुम्हे पूरा न कर सकी स्वयं अधूरी हो आई
पर, गालों पर, तुम्हारे हाथों ने याद दिलाई
बाबुल का घर छोड़ 'हमारे' घर आई
पर तुमने रखा बना मुझे हरदम पराई
तुम्हारे अपनों को हर कदम अपना माना
पर मुझे कर दिया मेरे ही बाबुल से बेगाना
मेरे सपने तुमसे अथः और इति होते
तुम्हारे बातों, आहों में गैर के चर्चे होते
तुम्हारा अधूरापन मुझे कभी नजर न आया
मेरे हर पग में तुमने केवल अधूरापन पाया
तुम्हारे अधूरेपन की सजा है मैंने यूँ पाई
तुम्हे पूरा न कर सकी स्वयं अधूरी हो आई
6:21p.m., 13/8/10
prritiy,
ReplyDeletezindgi mein ye adhurapan kabhi bharta nahin...
तुम्हारे अधूरेपन की सजा है मैंने यूँ पाई
तुम्हे पूरा न कर सकी स्वयं अधूरी हो आई
bhaaook rachna, shubhkaamnaayen.
बहुत ही खुबसूरत रचना ...
ReplyDeleteतुम्हारे अधूरेपन की सजा है मैंने यूँ पाई
ReplyDeleteतुम्हे पूरा न कर सकी स्वयं अधूरी हो आई
बहुत सुंदर सच्चाई से कही गयी बात....
उम्मीद ही अधूरापन लाती है.
ReplyDeleteउम्मीद न हो तो हम पूर्ण हैं.
सुन्दर रचना के लिए आभार.
हकीकत बयान करती यह पोस्ट अच्छी लगी...शुभकामनायें !!
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण और मार्मिक लिखतीं हैं आप.
ReplyDeleteकटु सत्य को उजागर करते हुए.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आप आकर अपने सुन्दर
सार्थक वचनों से निहाल करती हैं.
आपका आभार प्रकट करने के लिए
शब्द नहीं हैं मेरे पास.
फिर से आपको हार्दिक निमंत्रण है.
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.