ब्लॉग में आपका स्वागत है

हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं .... You are my strength, inspiration :)

Monday, October 11, 2010

अब कहाँ योगी ...



क्या
टूट गया
नाता
योगी-पगली का
क्यूँ
न है
योगी को
पगली के
दर्द का एहसास ..
क्यूँ
ये खेल रचा
हे प्रभु!
क्यों
हमेशा
पगली के भाग में
भरे आंसू .
क्या
तेरे जग में
प्रेम का
यही
प्रतिकार है ......
क्यूँ
फिर
भरा
इस पगली में
इतना प्रेम
और
साथ
भर दी
सहनशीलता
क्यूँ
ये पगली
चीख कर
रो
नहीं पाती
कह
नहीं पाती
मुझको ठगा है .
योगी भी .

वो
ज़माने के रंग
में
रंगे हैं
गर
बनाई
प्रभु
अपनी
ये दुनिया
ऐसी
तो
इस पगली को
क्यूँ न
बनाया
वैसा
क्यूँ
प्रीति
बना दिया
ह्रदय का
हर अंश
और
क्यूँ
लिख दी
ठोकरें,
चालें,
ठगी
इस पगली के
नाम ..

सोचा
पगली ने
न होंगे
योगी जुदा,
जब सुना
मुँह से
“मैं तुम्हारे लिए
क्या
कर सकता हूँ"
करुणा के
प्रतुत्तर में
पर
योगी
क्या सच
केवल
भोगी निकले...
मानती नहीं
ये आत्मा
ये सच
पर
पगली!
आज
आत्मा की
सुनता
कौन है
आज चाहत
बदल
गई है...
नारी-प्रेम
नहीं
नारी-देह
चाहत है....
चल पगली
ये जहाँ नहीं
तेरा
हो न सकेगा
यहाँ बसेरा
नोच ले
अपने
पंख
भूल जा
उड़ान..
चल
दूर
अब कहाँ
योगी ...

टूट गया ..........
12:15a.m., 20/5/10

No comments:

Post a Comment

Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.