द्वार खुले छोड़े थे मैंने तुम्हारी बाट जोहते हुए
देखो तो उड़ कर पत्तों की ढेर ने द्वार बंद कर दिया
अब तुम न देख पाओगे इस पार मेरे बिखरे केशों को
न कभी मेरी तकती आँखों में भरी आंसुओं की झड़ी को
 जान  न  पाओगे  मेरे  सारे  दिन  तुमने  कितने  स्याह  किये 
मेरी सूनी रातों से कितने सतरंगी स्वप्न तुमने छीन लिए
ये भी न सुन पाओगे मेरी सिसकियों ने फिर भी प्रार्थना की
तुम्हे अपने लिए माँगना चाहा पर फिर होंठों ने चुप्पी भर ली
आज भी चुप से तुम्हारी छवियों को घंटों निहारती रहती हूँ
तुमसे ढेरों बातें करती हूँ, तुम्हारी ही बाँहों में रोती हंसती हूँ
तुमने पहले उस दर्द से छीना फिर मुझको मुझसे छीन लिया
आज भी मैं तुमसे हाँ तुमसे बहुत प्रेम करती हूँ
6.38pm, 7 jan, 14
मेरी सूनी रातों से कितने सतरंगी स्वप्न तुमने छीन लिए
ये भी न सुन पाओगे मेरी सिसकियों ने फिर भी प्रार्थना की
तुम्हे अपने लिए माँगना चाहा पर फिर होंठों ने चुप्पी भर ली
आज भी चुप से तुम्हारी छवियों को घंटों निहारती रहती हूँ
तुमसे ढेरों बातें करती हूँ, तुम्हारी ही बाँहों में रोती हंसती हूँ
तुमने पहले उस दर्द से छीना फिर मुझको मुझसे छीन लिया
 फिर 'प्रीति' से कहके इंकार किया कि तुमने कुछ भी न किया
आज भी मैं तुमसे हाँ तुमसे बहुत प्रेम करती हूँ
6.38pm, 7 jan, 14