मैं सोच में रही वो बात करेंगे
वो आस में रहे हम याद करेंगे
यूँ सोचते अर्सा बीता, गए तरस
आस को आस लगाये बीते बरस
कब ये दूरी, राहों में, पसर गई
तस्वीरों में जम, धूल की परत, गई
बस दो हाथ की ही तो थी दूरी
और ना ही कोई भी थी मजबूरी
समय बीतता गया बढ़ती गई दूरियाँ
बढ़ती गई जो न थी कहीं भी, मजबूरियाँ
न सोच टूटी न आस हुई पूरी
रह गई एक कहानी फिर अधूरी
12:51am, 10/10/10