की थी
पगली ने
जब
गुहार
“कर रहें
हैं
योगी
हमेशा की तरह
मुझे दूर”
तो
याद है
क्या कहा था
योगी?
वो शब्द…
एक रैन
जीवन दे गए
वे शब्द
“ना!
दूर नहीं
कर रहा
हमेशा की तरह गोदी में
सर रख
रहा हूँ,
सो
रहा हूँ”
कैसे
भुला दिया
“चंद्रिके” को,
शीतल
ऊष्मा को
जिसने
नेह दिया
जिसके
आँचल में
नींद ली
जिससे दूर हो
पंख तो फैलाये
पर
लेने
चैन की
नींद
डैनों
तले ही
आए…
कैसे
भुला दिए
चैन के
वे पल
जो
पगली की
गोद
में ही
आकर
नींद
देती थी…
पर योगी
वो पल
जो ख़ुशी
दे गए,
पगली को
कचोटते हैं
पावन
मन था
जिस रैन में
अब
ग्लानी
भर देते हैं
प्रेम-
भोग
बना गए,
मुस्कान-
अश्रु
सजा गए,
जिन वचनों में
जीती थी
“चंद्रिके”
वही
वचन
पगली को
रुलाती हैं
योगी,
बहुत तडपाती हैं
योगी…
तुम
कहीं भी
नहीं गए
पगली में
गए समा
योगी....
दीवानी
बना गए
योगी...
पगली में
समा गए
योगी!!!!
1:14a.m., 20/5/10
बहुत सुन्दर सृजन, बधाई
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर भी आप जैसे गुणीजनो क मार्गदर्श्न प्रार्थनीय है