तेरा मेरा रिश्ता
पल-पल बदलता
पर एक स्थायित्व लिए
पतझड़ छाया बहार आई
नैनो ने सरिता भी बहाई
पर दिल रहा आस लिए
तुमसे शिकायतें कही
कई पल रूठी रही
पर तुम रहे मुस्कान दिए
तेज आंधी भी आई
जुदाई का संदेसा लाई
पर प्रीत रही विश्वास लिए
हर जंग में नया रंग आता
हर नर्तन में निखरता जाता
नेह-दीप रहा आलोकित किये
7:14pm, 14/3/10
copyright@Prritiy
सुन्दर कविता प्रीती जी... रिश्तों को समझते हुए अच्छा ताना बुना है आपने.. नव वर्ष की शुभकामना..
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ReplyDeleteNice combination of words. Great piece of talent.
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ReplyDeleteअच्छी रचना.... पर..ये क्या बात हो रही है...
ReplyDeleteअनामिका जी.... यहाँ किस बात का जिक्र हो रहा है समझ से परे है....
आप किसी के व्यक्तित्त्व को मात्र एक कविता के आधार पर कैसे समझ सकती हैं...
और कविता में कहीं ये भाव नहीं आये की कवियत्री का स्वार्थ झलक रहा हो...
आपकी सोच पर मुझे ताज्जुब है....
"कैसे कोई किसी को बिना जाने समझे कह सकता है की उसे अपनी सोच बदलने की जरुरत है.."
जैसा के आपने प्रीती जी को कहा... सोचियेगा जरुर...... शुभकामनाओं सहित...
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ReplyDeleteअनामिका जी.....बड़ी अजीब बात है... मैं किसी को समझाने के लिए नहीं आया हूँ...
ReplyDeleteमात्र यह कहने आया हूँ के आप कविता को आधार बनाकर अगर ये बात कह रही हैं तो सरासर गलत है....
अगर व्यक्तिगत रूप से किसी तरह का आछेप लगाया जा रहा है तो वो सही नहीं है....
और आपके मान जाने से या ना मान जाने से हकीकत नहीं बदलेगी....
बस आपकी बात का जवाब है....अपने व्यक्तिगत द्वेष से ऊपर उठिए और साहित्य पर ध्यान केन्द्रित कीजिये...
पुनः शुभकामनाओं सहित...
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ReplyDeleteShubhan Allah...
ReplyDeleteहर जंग में नया रंग आता
ReplyDeleteहर नर्तन में निखरता जाता
नेह-दीप रहा आलोकित किये ati sundar
bahut sunder
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