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बहे स्नेह्धारा अविरल
संवारूं जग को प्रतिपल
करती रहूँ सबकी भलाई
किसने है सीख सिखाई
वो मेरी माँ है
हर चीज को मिल बाँटना
चाहों को शीशा दिखाना
परिवार पहले है आता
कहाँ से ये गुण समाता
वो मेरी माँ है
भूखे पेट कभी सो लेना
तृप्ति हर दिल में भर देना
गुड़ बर्फी से मीठी पाई
किसने त्याग की रीत बताई
वो मेरी माँ है
छोटों को दुलार करना
बूढों का मनुहार करना
सबका मान है स्वमान से बड़ा
किसने दिखाई सम्मान की विधा
वो मेरी माँ है
सबकी प्रिय हूँ मानी जाती
आदर सबसे निरंतर पाती
मुस्काते , बाधाओं से लड़ना
कहाँ से आई ये प्रेरणा
वो मेरी माँ है
माँ सम कर्मठ हैं कहते मुझको
माँ सी सायानी है कहते मुझको
हूँ आज जो सबकी दुलारी
किससे पाई ये छवि प्यारी
वो मेरी माँ है!
12:45 p.m., 10/8/10
अब कहने के लिए कोई शब्द नहीं है....
ReplyDeleteक्यूंकि ये अपने आप में एक परिपूर्ण शब्द है.. "माँ"
bahut sundar maan ke liye to shabd hi nahin hai,
ReplyDeletebahut - bahut dhanywaad
माँ
ReplyDeleteपर लिखा जाये और उमें कशिश ना हो ये तो कभी मुमकिन नही
माँ जैसी ही खूबसूरत कविता लिखी है आपने
Good piece of work.Awesome
ReplyDeleteGood job preeti:) very sweet poem
ReplyDeleteWell done and well said..keep up the good work..:)
ReplyDeleteReally true feelings, mothers are great. Aunty is looking very lovely in this picture.
ReplyDeleteprachi
मन के तारों को झंकृत कर गयी रचना।
ReplyDeleteसंजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
ReplyDeleteवो मेरी माँ है! bahut pyaari ,,sii kavitaa ..bahut sundar