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Monday, October 11, 2010

योगी में पगली


न तुम्हारा कोई ठिकाना
योगी,
न कोई अपना
पगली का....

तुम भटको
जग में किसी चाह में,
पगली चले
अंत की राह में ..

योगी तुमने
प्रेम को त्याग दिया,
पगली ने
त्याग से प्रेम किया….

तुमने चाहा
जग में नाम,
पगली का
तुम्हारे चरणों में
धाम…

कर दूर
पगली से स्वयं को
संसार में रमाया,
पगली ने 
छोड़ संसार
स्वयं को 
योगी में समाया….

तुमने
मंदिरों में जा
की देवी की उपासना,
पगली ने हर पल
तुम्हारे ही लिए
की प्रार्थना…

योगी पगली को
भुलाना चाहकर भी
न भुला पाए,
पगली में
बिन याद किये भी
रहे निरंतर योगी समाये...

योगी
जग में रहे
पर न कोई
जान पाया,
योगी ध्यान
में डूबी पगली ने
‘योगी की पगली’
नाम पाया...

न तुम्हारी भटकन
का पता होगा,
ठोर का न पगली का
निशान होगा...

रहो कहीं भी
योगी,पगली को
न विलग कर पाओगे
उसका एक अंश
सदा अपने में पाओगे,
ना ही पगली
खोकर भी तुम्हे
खो पायेगी योगी,
एक तुम्हारा अंश भी
बन गया है अटूट हिस्सा…
योगी में पगली
और
पगली में योगी
का होगा सदा निवास ,
पगली के चले जाने
के भी बाद
योगी में पगली
रहेगी आबाद.
12:10p.m., 20/5/10

5 comments:

  1. विलक्षण प्रेम और भक्ति के दर्शन करा दिए हैं आपने अपनी इस अनुपम अभिव्यक्ति से.
    'योगी में पगली' अदभुत प्रस्तुति है.
    बहुत बहुत आभार.

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  2. .



    प्रीति जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    प्रेम का अद्भुत रूप आपने दिखाया है … सांसारिक प्रेम कब ईश्वरीय प्रेम हो गया … पता ही नहीं चला …

    समय मिले तो मेरे यहां भी प्रेम का एक रूप देखने पधारें…
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. wahhhhhhhh!!!!!!!!!!!!!!

    Pritiyji.ek anupam avismarneeya sranggar ras se paripoorna kavita.thanks a lot.

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  4. bahut dinon baad aapki 'pagli' ki kadi padhi hun, hamesha ki tarah maarmik abhivyakti...
    पगली
    के
    चले जाने
    के भी
    बाद
    योगी में
    पगली
    रहेगी
    आबाद.
    shubhkaamnaayen.

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  5. योगी एक दिन
    तुम भी पागल
    हो जाओगे :)

    बहुत खूब !

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