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Monday, October 11, 2010

कहती है ये पगली "'मैं जीवित हूँ"

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बैठी थी
यूँ
पगली
गुमसुम
नहीं भान था
सगरे जग का
बस
था तो
योगी का
ध्यान...

ध्यानमग्न
होंगे
वो योगी
और
मुझे है
उनका ध्यान
ऐसे में
संदेसा आया,
था
योगी ने
पुछवाया
"कैसी हो?"
कैसी हूँ?
अब,
क्या कहूँ
मैं पगली....
कहूँ अगर
"मैं जीवित हूँ"
तो
भी
क्या है ये
पूर्ण सत्य
और कह दूँ
"स्वस्थ हूँ"
तो
मन-आत्मा
का
सत्य नहीं....

क्या
कह दूँ
वो
जो है सत्य
जो चाहे ना
योगी सुनना,
जो न
पाएंगे वो सुन

कैसे कह दूँ
वो
जो
उनकी
चाह नहीं
और
कैसे कह दूँ
कि
ओठों पर
आह नहीं

सुनो
ओ योगी!
भेजा है
कोरा संदेसा
जो
मन भाए
वो
गढ़ लेना,
बस
टपक गए
थे
जो कुछ बूँद
उनका ताप
ना
छू लेना

बस चलना
अपनी राह
करना
पूरी
हर
अपनी चाह
साधना
हो जाये पूरी
रहे
सफलता से
न कोई दूरी
ना
सोचना
कैसी होगी पगली
कैसी भी
हो
बस
सुन लो
कहती है
ये पगली
"'मैं जीवित हूँ"
11:04pm, 3/5/10

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