पगली को
वक़्त ने नहीं
योगी ने
दूर
किया
वक़्त ने
तो
जतन
कर
मिलाया था
वो
विदाई का सन्देश
जो सुनवाया था,
योगी को
करीब
लाया था
स्वयं
नजदीकी का प्रयास
और
एक दिन
बना दिया
इस पगली को
“चंद्रिके”
इतना
करीब
स्वयं को लाये
स्वयं योगी
स्वयं ही घबरा गए
स्वयं ही छिटक गए
वो
रात
जो
थी
मिलन की
नवजीवन की ...
क्यूँ
घबरा गए
जिस रात ने
योगी
निंद्रा दी,
“चंद्रिके”
दी ..
बदली की
ओट से
योगी
“चंद्रिके”
को
स्वयं निकला था .
पूछने पर भी
कुछ भी न
माँगा था
पगली ने
फिर क्या
भूल हुई
जिसकी
सजा
पाई पगली ने ….
क्यूँ
मौन समर्पण
अपराध
बना
क्यों जीवन में
अवसाद
भरा
नहीं
जान
पाई
ये पगली
क्यूँ
सजा मिली
समर्पण पर
और
फिर
पगली ने
सजा के लिए
भी
किया
मौन समर्पण ….
बस
मौन समर्पण
9.33 p.m., 15/5/10
bahut sundar dhang se piroya hai ahsaason ko
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