आह
ये
पगली
क्या
कर बैठी
क्यूँ
भावों को
स्वर
दे बैठी .
बैठी थी
प्रभु चरणों में ...
क्या करती
जब
आ गया
योगी का
फिर ध्यान
कह उठी
भावावेश
आ रहे हैं
बहुत
याद...
मन में
उठा
एक प्रश्न
सो संग
पूछ बैठी
वो भी
तुरंत
"आप ठीक हो न"
पर
फिर
हो गई
स्वयं
उदास
सोच
योगी
न हो जाएँ
और
दूर.....
क्यूँ
भावों को
शब्द दिए
बैठ गई
ये
आह लिए.
अब क्या होगा
क्या न होगा
वो
यूँ भी
हैं
अपने से
दूर किये....
अब बैठी
रोये है
पगली
आह!
मैं
ये क्या
कर बैठी,
क्यों
कर बैठी
काश
वहां पहुंचे
न
करुण पुकार
जिसका
न होगा
उद्धार,
ना
पहुंचे
उन तक
ये पाती
क्यों भावों को
छुपा न पाती...
क्यों है
इतना भोलापन
क्यों इतना
कोमल ये मन
पर
योगी
न अब कहूँगी
कि
याद हूँ
मैं तो
करती हरपल
बस ये भूल
क्षमा कर देना
है
ये पगली का कहना
याद ना आओ
है ना बस में
पर
होठों को
मैं सी लूंगी
बस
मांगे है
ये
अभयदान
जो हो जाए
भूल कभी
तो
ना
हर लेना
अपनी मुस्कान
ना कहेगी
अब ना कहेगी
ये पगली
कि
आते हैं
बहुत याद
ना करेगी
योगी
ऐसी भूल
बस
इस बार
क्षमा....
नयन झुका,
है,
पगली का कहना
2:02pm, 6/5/10
No comments:
Post a Comment
Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.
आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.