क्यूँ
करता है
मन
हरपल
ध्यान
क्यूँ
न
हटती
वो छवि
नैनों से…..
बैठी हूँ
प्रभु भक्ति को
पर
आ जाते हैं
योगी
ध्यान,
फिर
शुरू
सोचों का दौर…
कहाँ
एवम
कैसे
होंगे?
क्या
मुझे स्मरण
करते भी
होंगे
हाँ!
करते तो हैं
ये तो तय है,
वर्ना
तपती भूमि
में
वो बूंदें
कैसे पड़ती हैं
जिन्हें
सीपी के जैसे
यादों का
अनमोल मोती
बना लेती हूँ
और
उन्हें
मुस्कान बना
होठों पर
सजा लेती हूँ
सच कहती हूँ
तब
बहुत
सुंदर
लगती है
ये पगली
सारे जग का
श्रृंगार
भी फीका
लगता है
उस
मुस्कान के आगे
वो मुस्कान
जो
योगी
से
शुरू
होती है
और
मुझमें
समा
जाती है….
हरपल
संवर
जाती है
इस
पगली को
और
योगी के
ध्यान
में
डूबी
पगली
स्वयं को
देखती है
योगी
के ही
नैनों से....
वो
नजरें
सँवार
जाती हैं
रूप-सौंदर्य
और
ये पगली
सच!
ये पगली
बहुत सुंदर लगती है
9:54pm, 12/5/10
No comments:
Post a Comment
Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.
आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.