कैसा था तुम्हारा प्यार
जहाँ मिलन से पहले ही जुदाई थी
दरिया में बहाने कागज की नाव बनाई थी
भरने से पहले सूनी करनी कलाई थी
सोलह श्रृंगार की जगह जोगन बनने की दुहाई थी
सपने देखो ठीक सच होने की मनाही थी
अपना बनाया तो ना, न रूठने की सौं दिलाई थी
कैसा था तुम्हारा प्यार
कहता सपनों की परी हो पर सपनों में रहो
अपनों से भी करीब हो पर सदा जुदा रहो
न छू पाए साया कोई तुम्हारा पर मुझसे भी दूर रहो
कैसा है तुमसे प्यार
कि बिसरा देना चाहूँ पर भूल ना पाऊँ
सोचूं न तुमसे मिलूं, बिन देखे रह ना पाऊँ
जंगल हो या मंगल तुम्हे बिसरा ना पाऊँ
जाना है दूर मुझको सोचूं तुम्हे रुला ना जाऊं
हो कुछ ऐसा न याद करूँ और तुम्हे याद ना आऊँ
न तुम कभी कहो न मैं ही कभी कह पाऊँ
कैसा था तुम्हारा प्यार
2.36pm,
25/7/2012
दरिया में बहाने कागज की नाव बनाई थी
ReplyDeletebahut achchhi kavita
बढिया
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
सादर
जिनके बिना रहना आसान नहीं उन्ही से गिला ... बहुत खूब लिखा है ,...
ReplyDeleteआपको १५ अगस्त की शुभकमनाएं ...
जाना है दूर मुझको सोचूं तुम्हे रुला ना जाऊं
ReplyDeleteहो कुछ ऐसा न याद करूँ और तुम्हे याद ना आऊँ
न तुम कभी कहो न मैं ही कभी कह पाऊँ
कैसा था तुम्हारा प्यार
भावपूर्ण हृदयस्पर्शी प्रस्तुति.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा प्रीति जी.
रिश्तों औऱ सवालों का
ReplyDeleteरिश्ता बहुत जटिल होता है
जाने किनी कही-अनकही
बातों का सेतु जोड़ता है
दो प्रेम करने वालों को
लेकिन उसी सेतु में पड़ी
गलतफ़हमियों की दरार
बांट देती है कभी एक रहे
नदी के दो किनारों की तरह
ताकि वे निरंतर साथ-साथ
चलते हुए भटकते रहें
जिंदगी की समाप्ती के
समुद्री मुहाने तक
एक बार फिर से
मिलने की उम्मीद में....
सुंदर कविता के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामना।
Beautiful writing and beautiful presentation prritiy ji. Happy Independence Day to you too:)
ReplyDeleteसच कितना बदल जाता है समय के साथ प्यार के मायने ..
ReplyDeleteबहुत देर बाद समझ आती है ..
बहुत बढ़िया रचना
कैसा ये इस्क है.... अजब सा रिस्क है!!!!
ReplyDeleteआशीष
--
द टूरिस्ट!!!
nice presentation....
ReplyDeleteAabhar!
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