कुछ लोगों को श्राद्ध, ब्राह्मण या तथाकथित
उच्च
सम्प्रदाय
और पितृ पक्ष के विषय में अनर्गल लिखते पढ़ा है.
पहली बात तो मैं आज तक ये नहीं समझ पायी कि क्या सहनशील होना एक गुनाह है क्यूँकि सब केवल 'हिन्दू'
रीति रिवाजों के खिलाफ बोलते नजर आते हैं जबकि हर जाति, संप्रदाय, धर्म में रीति रिवाज हैं, फिर एक ही धर्म विशेष के विरुद्ध ही अनर्गल प्रलाप क्यूँ .
सारी उँगलियाँ बराबर नहीं होती इसलिए किसी एक जाति, संप्रदाय, धर्म को इंगित कर कुछ भी कहना अपराध और पाप ही कहलायेगा
क्यूँकि इससे दूसरों का दिल दुखता है. और जो लोग दूसरों पर हर समय ऊँगली उठाये दोषारोपण करते हैं क्या वे जानते हैं कि "वे स्वयं कितने बड़े गुनाहगार हैं' क्यूँकि इस तरह कि बातों से वो लोगों के बीच नफरत बढ़ाने का कार्य करते हैं और उनके साथ देने वाले भी उतने ही दोषी हैं जो किसी भी विषय के समर्थन या विरोध में धैर्यपूर्वक जवाब ना देते हैं वरन भड़काऊ भाषण करते हैं.
आस्था और विश्वास सबकी निजी सोच है. मेरे स्वयं के बड़े भाई ईश्वर का पूजन नहीं करते और मैं करती हूँ. पर ये लड़ने का विषय नहीं है, मेरी सहेलियां हैं जो ईश्वर की सत्ता पर यकीं नहीं करती पर मैंने उनको कभी भी किसी के विश्वास या आस्था को नीचा दिखाते नहीं देखा और इसलिए मैं उनका आदर भी करती हूँ.
अब रही बात श्राद्ध की या किसी भी ऐसी मान्यता की कुछ मान्यताएं बनी थीं किसी वजह से. श्राद्ध करने वाला जानते है श्राद्ध क्यों किया जाता है, जो लोग इस लोक को त्याग गए है उनकी याद में. ये एक तरह से याद दिलाना है कि सब नश्वर हैं इसलिए अपने कृत्यों पर ध्यान दें. जब स्वर्गीय सम्बन्धी के लिए इतना करना है तो ये भी याद दिलाता है जो जीवित बुजुर्ग हैं उनका भी ध्यान रखना है. ये तो अपनी सोच पर है कि आप क्या सीखते और समझते हैं.
उसी प्रकार हर रीति के पीछे कारण था, इस तरह भोजन जो खिलाया जाता है पशु पक्षियों को वो पशु पक्षियों का हमारे जीवन में महत्व बताने के लिए है ताकि हम उनकी भी सुरक्षा करें. पहले जो भी नियम बने थे वो देश, काल और वातावरण के सदुपयोग के लिए थे जिन्हें कालांतर में कुछ लोगों ने निजी स्वार्थ के रहते मोड़ दे दिए, परन्तु पूर्व में उनका उदेश्य समाज कल्याण ही था.
जैसे मुझे याद है बचपन में एक पाठ में पढ़ा था कि रूढ़ियाँ
जिसमें अच्छे, बुरे फल का उल्लेख किया जाता है उसके पीछे कारण था.
जैसे कि अगर सामान्यतः लोगों को कहें के पक्षी को जेठ के महीने में पानी पिलाना चाहिए क्यूँकि गर्मी अधिक होती है तो कम ही किसी को रोज ध्यान रहेगा लेकिन अगर कहें तो इससे कल्याण होगा तो सब तत्पर होंगे. बस इसीलिए हमारे ज्ञानी पूर्वजों ने मान्यताएं बनाई जिनका उद्देश्य कल्याण ही था मानव और प्रकृति दोनों का.
जो लोग दिन भर दूसरों में कमियां ढूंढते फिर रहे हैं वो कहाँ किसी से स्नेह भाव रख सकेंगे या दूसरों कि सेवा कैसे करेंगे?