वो कहते मुझसे क्यों इतना प्रेम है
सब कहते क्यों उससे इतना प्यार है
व्यथित पूछूँ प्रेमदेव से क्यों इतनी प्रीत है
क्या कहूँ मैं तो नहीं जानूं इसका उत्तर
पूछूँ तुमसे इस जगसे मुझे दे दो प्रत्युत्तर
क्यों नेह कर हुई नजरों में तुम्हारी कमतर
क्यों हृदय को है इतनी उनकी लगन
वो तो हैं जीवन की रंगीनियों में मगन
क्यों भर गयी स्नेह भरे जीवन में अगन
चित्कार करता मन क्यों इतनी वेदना है
असहनीय अब पीड़ा में इस तरह जीना है
छलकती प्रणय पीर नीर से भरी नेत्र गागर है
व्यथित हो पूछूँ तुमने फैलाया वो मायाजाल
किस कदर उलझ गयी मैं हो गयी देखो बेहाल
तुम ही कहो ना क्यों तुम्हारी 'प्रीति' में मेरा ये हाल
@prritiy, 10.47 pm, 5 july 2015
पूछूँ तुमसे इस जगसे मुझे दे दो प्रत्युत्तर
क्यों नेह कर हुई नजरों में तुम्हारी कमतर
क्यों हृदय को है इतनी उनकी लगन
वो तो हैं जीवन की रंगीनियों में मगन
क्यों भर गयी स्नेह भरे जीवन में अगन
चित्कार करता मन क्यों इतनी वेदना है
असहनीय अब पीड़ा में इस तरह जीना है
छलकती प्रणय पीर नीर से भरी नेत्र गागर है
व्यथित हो पूछूँ तुमने फैलाया वो मायाजाल
किस कदर उलझ गयी मैं हो गयी देखो बेहाल
तुम ही कहो ना क्यों तुम्हारी 'प्रीति' में मेरा ये हाल
@prritiy, 10.47 pm, 5 july 2015
achhi kavita
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