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हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

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Sunday, July 12, 2015

mai teri achhai मैं तेरी अच्छाई





मैं तेरे जीवन की अच्छाई हूँ
जो तुझमें बहुत गहरे समाई हूँ
हर कदम तेरे साथ साथ होती हूँ
कभी ओझल तो कभी दिखती हूँ

जहाँ बहकते भटकते कदम तेरे हैं
शब्द सच का दर्पण दिखाते आए हैं
तुझपे कई बार बैरियों ने घेरे बनाये हैं
साथ मेरे समर्थन भरे वाक्यों ने दिये हैं

पर अब तुझे अधिक भाने लगा है
जो कुछ भी यहाँ गन्दा काला मैला है
अब ना मेरी यहाँ कोई आवश्यकता है
सदैव के लिए विदा लगता यही भला है

9.30 am, 12 july, 2015

mai tere jeevan ki achhai hun
jo tujhmein bahut gehre samai hun
har kadam tere saath saath hoti hun
kabhi ojhal to kabhi dikhti hun

jahan behkate bhatakte kadam tere hain
shabd sach ka darpan dikhate aaye hain
tujhpe kai baar bairiyon ne bhere banaye hain
saath mere samarthan bhare vakyon ne diye hain

par ab tujhe adhik bhane laga hai
jo kuchh bhi yahan ganda kala maila hai
ab na meri yahan koi aavshyakta hai
sadaiv ke liye vida lagta yahi bhala hai

Tuesday, July 7, 2015

kyun pyar क्यों प्यार



वो कहते मुझसे क्यों इतना प्रेम है
सब कहते क्यों उससे इतना प्यार है
व्यथित पूछूँ प्रेमदेव से क्यों इतनी प्रीत है

क्या कहूँ मैं तो नहीं जानूं इसका उत्तर
पूछूँ तुमसे इस जगसे मुझे दे दो प्रत्युत्तर
क्यों नेह कर हुई नजरों में तुम्हारी कमतर

क्यों हृदय को है इतनी उनकी लगन
वो तो हैं जीवन की रंगीनियों में मगन
क्यों भर गयी स्नेह भरे जीवन में अगन

चित्कार करता मन क्यों इतनी वेदना है
असहनीय अब पीड़ा में इस तरह जीना है
छलकती प्रणय पीर नीर से भरी नेत्र गागर है

व्यथित हो पूछूँ तुमने फैलाया वो मायाजाल
किस कदर उलझ गयी मैं हो गयी देखो बेहाल
तुम ही कहो ना क्यों तुम्हारी 'प्रीति' में मेरा ये हाल
@prritiy, 10.47 pm, 5 july 2015