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हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं .... You are my strength, inspiration :)

Monday, February 15, 2010

मुझे जनम दो माँ - mujhe janm do maa

मुझे जनम दो माँ
जब तुम मुस्कराती हो, मुझे भीतर भी छू जाती हो
वैसी मुस्कान अपने होठों पर सजाना चाहती हूँ
तुम्हारे होंठ गुनगुनाते हैं, प्रकृति की सुन्दर छवि बनाते हैं
उस छवि को नयनों में भर गुनगुनाना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ

तुम थक जाती हो, स्नेहवश कर्म करती जाती हो
वैसी कर्मठता अपने में झलकाना चाहती हूँ
महसूस किया तुम पर जुल्म होता, पर तुम हो सहनशील माता
सहनशीलता कमजोरी नहीं, मन की ताकत है दिखाना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ

लक्ष्मीबाई हुई यहाँ, इन्दिरा, कल्पना जैसी कई खिली यहाँ
मैं भी ऐसी एक कली बन खिलना चाहती हूँ
आँखों से अश्रु पोंछने हैं, सुना है अभी कई अन्धेरे कोने हैं
उजाले की किरण बन रोशनी बिखेरना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ

सुनती हूँ तुम हो, मन से ही नही रूप से सुन्दरी हो
वैसा ही हृदय-रूप धर, धरा पर महकना चाहती हूँ
पिता हर्षित हो मुस्काते हैं, भाई पर गौरांवित हो
वैसा ही गर्व उन्हें दे, मुस्कान लेना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ

मैं भी इक दिन एक महकती कली का सृजन करना चाहती हूँ
मुझे जनम दो माँ

Saturday, February 13, 2010

तुम हो




आजकल मेरे गीतों में बस तुम हो
 सूरज की लाली, चंदा की चांदनी तुम हो
 मेरे गेसू उड़ाते पवन के झोंकों में तुम हो
 वेणी पर सजा पुष्पहार बस तुम हो


माथे पर सजी बिंदिया तुम हो

 नजरों से बचाता कजरा तुम हो
 होठों पर छाई सुर्खी तुम हो
 छलक पड़ती जो बूंदें तुम हो

हृदय का मधुर स्पंदन तुम हो

 नैनो में तैरते स्वप्न तुम हो
 विरह वर्षा फुहार तुम हो
 मेघों का अंधकार तुम हो

टूटा हर स्वप्न, वचन तुम हो

गीतों में छिपा क्रंदन तुम हो
मैंने जिसे खोया तुम हो
मुझे जिसने खोया तुम हो
9:18 p.m., 13 feb, 10.


मै रोती नहीं


जानते हो मैं रोती नहीं
मेरे आंसू तुम्हे रुसवा ना करे कहीं
पूछ ना बैठे कोई, देख उदास मेरा चेहरा
तेरे लिए की दुआओं पर, ना लगे पहरा


मैं सजती-संवरती भी हूँ
पायल, चूड़ी पहनती भी हूँ
जाने ना सच मनजोगन का
कहे ना तू भी रह अब जोगी सा

फूलों संग बातें भी करती हूँ
हवा सी उड़ती फिरती हूँ
जान मेरे रुके क़दमों की सच्चाई
दे ना कोई तुझे रुकने की दुहाई

दिए की बाती में श्रद्धा लौ भरती हूँ'
अभिषेक, तिलक, कर श्लोक पढ़ती हूँ
डूबी हूँ
मैं जिस सूने अंधकार में
भर ना दे वो कहीं तेरे संसार में


पर जब आती हूँ अपने पास
लिए बिखरी हुई टूटी आस
सारे छद्मों को फिर
मैं भूलकर
हो जाती हूँ बस तेरी होकर

श्लोक सारे भूल जाती हूँ
दीप सारे बुझा देती हूँ
हवा पर द्वार बंद कर देती हूँ
खुश्बुओं से नाता तोड़ देती हूँ

मन जोगन को जीने देती हूँ
श्रृंगार सब नोच लेती हूँ
चेहरा हाथों में छिपा लेती हूँ
जानते हो
मैं बहुत रोती हूँ 
6:56p.m., 13 feb, 10

Thursday, February 11, 2010

कैसे निशब्द बुलाऊँ


क्यों आते हो मेरे पास, जीवन की आस लिए
जब किये है मेरी साँस, अंत का वरण किये

छाया है पतझड़ अनंत, अब छाया कैसे करूँ
कोंपल बिन शाख ना जिवंत, फलपात्र कैसे भरूँ

श्वेत मेघ सा निष्फल भटकन, जलवृष्टि कैसे सोचूं

बंजर बनी मैं धरती, कण-कण, हरयाली को कैसे सोचूं

त्याग गए तुम, स्वयं, खिवैया, पार किसी को क्या लगाऊँ
स्व को तुमने बहरा किया, फिर कैसे निशब्द बुलाऊँ

बगिया, बन गई जब वन, क्या किसी को राह सुझाऊँ
पानी सा बह गया जीवन, क्या जीवन-दर्शन समझाऊँ
12:23 a.m., 23 jan, 10

Tuesday, February 9, 2010

i could sleep!

Waves rising and falling
Dreams awake yet dreaming
You gave words to feeling
Real life started weaving

Ready to pick all the thorns
Give my falling legs, the arms
Resisting all fairy charms
Gave me the strong arms

Believing your eyes, I rose
Defying the world, I chose
Time brought us too close
Left nothing for me to pose

How did then the venom creep?
Leaving nothing even to weep!
All the memories could you sweep?
Peacefully in His arms I could sleep!

5:13 p.m., 9 feb, 2010

standstill


5:26 p.m., 9 feb, 10

पुष्पित जीवन रहे, कहे क्षत प्राण!

उस रात जो सूरज डूबा
भान था 'कल' है ग्रहण
रात ही लग गया ग्रहण
उस रिश्ते का सूरज डूबा


यूं ही रोंप लिया था पौधा
मैंने अपने मन-आँगन में
आन बसा हर धड़कन में
यूं गहरे पैठ लिया था पौधा

देने शक्ति उस जीवन को
मैं, हो रही, निर्जला
स्नेह्भूमि ना रही निर्जला
किया स्वीकार उस जीवन को

सुशोभित पुष्पित तरुवर वो
पुष्पित लता छू भर, बैठी
आह! ये क्या कर बैठी
कांटे उगा गया तरुवर वो

 
काया भीतर रक्त-रंजित क्षत प्राण
क्या तोडा, है तुमको भान?
क्या खोया, है तुमको भान?
पुष्पित जीवन रहे, कहे क्षत प्राण!
11.23 p.m.; 23 jan, 2010.