मैंने दिवास्वप्न में प्रीति के दिए जलाये हैं
अबकी बहार को मेरा आँगन सजाना ही है
मनभावन रंगों से स्वप्न रंगोली बनानी है
कि मुस्काए, आहा रंगों से भरा जीवन है
राहों को सुगन्धित पुष्पों से सजाया है
आए वो बहार तो कहे यहीं का हो रहना है
तारों से सजा, उजली उनकी राह करनी है
वो कहें मिट गया मन का सारा अँधियारा है (11.52pm, 15/7/2012)
पत्रों की हरीतिमा को जतन से लगाया है
कि मन सदा कहे जीवन में बसी हरियाली है
स्व को किया उनकी चरणों का आधार है
कि वो सोचें 'प्रीति' बिना कैसे कदम बढ़ाना है
2.44pm, 19/7/2012