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हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

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Tuesday, August 9, 2011

तेरी याद


तुमसे बातों में पली
जाने कब रैना ढली
लगे ना अब ये भली
थीं तुम ही मेरी कली

घटाओं से लहराते गेसु
उनमें सजे सुगंधित टेसु
खोया रहता उनकी छाँव में
जब छुपके मिले तेरे गाँव में

वो झींगुर की गुनगुन
तेरी पायल की रुनझुन
रख मेरे होठों पर हाथ-"चुप", कहना
और तेरी चुड़ियों का खनक उठना

मेरा खोना-गीतों सी तेरी बोली
तेरा अल्ह्ड़पन, नयनों से ठिठोली
वो चाँदी बरसाती रातें
होती पूरी बातें

वो बिन कहे कह देना सारा हाल
तेरी हर अदा पर होता निहाल
वो तेरी सखियों की बातें
फुलों, तितलियों से मुलाकातें

वो रूठकर मुँह फेर लेना
मुस्कराकर मेरा गम हर लेना
वो आँखों से रुष्ट होना
वो नयनों से प्रीत बरसाना

पर हरपल तेरी याद जो जगती
पल-पल नागिन सी है डसती
हर क्षण में तेरी याद है बसती
मुस्कान तारों से है बरसती

इन स्याह रातों में
खोया हूँ तेरा यादों में
हरपल स्नेह बरसाती है प्रिये
तेरे शब्दमधु जो मैंने पिए