मितभाषी हैं पापा मेरे
मुस्कान उनके चेहरे पर खेले
बचपन में लड़ती थी उनसे
पापा बात करो ना मुझसे
बस मुस्कुरा भर वो देते
सर हाथ वो रख देते
जब भी सर में दर्द होता
उनकी गोद मेरा सर होता
कभी न जाना अभाव क्या है
त्याग कितना उन्होंने किया है
खरीददारी थे वो न करते
बिन कहे मगर भांपा करते
क्रीम मेरे लिए लाया करते
सिनेमा जाने वो दिया करते
समय ने फिर ली अंगडाई
परीक्षा की कठिन घडी आई
थी पर न कभी अकेले
पापा थे सब परेशानी झेले
बच्चों की तकलीफों ने होगा तोडा
पर मुस्कान ने हमारा साथ न छोड़ा
समय शरीर पर घाव तो दे पाया
पर मन को मेरे छू न पाया
माँ-पापा का सबल सहारा
भाइयों का प्रोत्साहन सारा
मुस्काते थे होंठ जो मेरे
थी मुस्कान पापा की मेरे
बढ़ती रही जीवन की राह
बाधाएँ रोक सकी न प्रवाह
आज मुझसे हैं सब दम भरते
पापा मेरे चुप से हँसते
करते हैं प्रशंसा मेरी हरपल
पर मैं पापा की छाया केवल
भेद-विभेद न कभी बताया
प्रेम भाव ही सदा सिखाया
जाना हिन्दू-मुस्लिम मैंने ऐसे
राम श्याम दो भाई जैसे
अपना मान रखना सिखाया
दूजे का सम्मान समझाया
कैसे द्वेष फिर मुझमें भर जाए
पापा ने जहाँ स्नेह पुष्प -खिलाए
चाहा पापा ने भी था दिल में
बच्चे छूएं बुलंदियाँ जग में
सपनों में वो रंग हम भर न पाए
पापा हमारे फिर भी हैं मुस्काए
जैसा जीवन जिया है मैंने
जो भी खोया पाया जीवन में
पापा का दिया आत्मबल है
जिससे जीवन जिया हरपल है
बिटिया से घर घर है
अपनी बिटिया पर गर्व है
यही मुस्काते वो कहते हैं
पर पापा मेरे मेरा गर्व हैं
11:56 a.m., 10/8/10