अब क्या लिखेगी ये पगली
गीत मेरे वो ले गया
मौन मुझे दे गया
चाहा था उसको पुकारूँ
पुकारा भी
मुखर थे मेरे शब्द
पर वो ना सुन सका
ना सुन सका?
नहीं, उसने सुना नहीं
सुनकर भी नहीं सुना
गुनकर भी नहीं गुना
देखा मेरा पागलपन
देखा मेरा पागलपन उसने भी
उसने भी औरों के संग
कहा मुझको बेचारी
बेचारी को दुआ दो
बेचारी को दवा दो
दवा
दवा जो था मेरा
विष भरकर चला गया
चला गया
कहने जग को
उसने भी था प्यार किया
उसने जो था मेरा प्यार,
उसने भी था प्यार किया
पर चल बसी
चल बसा उसका प्यार
उसका प्यार
मैं
मैं चल बसी
मैं जो उसकी थी
मैं जो उसके प्यार की लाश हूँ
जीवित लाश हूँ
उसकी बेवफाई की
लहू सूख गया है मेरा
पर देखो गौर से
गौर से देखो उसका दामन
छींटे हैं मेरे लहू के
मेरा लहू है
तिलक उसके माथे का
जिसे उसने सजाया है
मेरे न होने की दुहाई दी है
और यूं सबका स्नेह पाया है
मैं जिन्दा हूँ
जिन्दा हूँ मैं पर
मुझको प्रतिमा बनाया है
मुझपर हार चढाया है
शिव के रात्रि की थी वो अमावस
जिसे उसने पूनम बनाया था
आज मुझे अमावस बनाया है
मेरे आगे दीप जलाया है
वादों के देवता बने हैं
मुझे जीतेजी ठुकराया है
दूर से देखूं
दूर से देखूं हूँ मैं पगली
उसके रोशन चेहरे को
वो जो साथ चले थे मेरे
वो जो थामे थे मेरा हाथ
छोड़ गए हैं मेरा हाथ
छोड़ गए हैं कम्पन
अधरों में, हाथों में
अब क्या गाएगी ये पगली
अब क्या लिखेगी ये पगली
हाँ हूँ मैं पगली
हाँ मैं पगली हूँ
9:04pm, 7/4/10
welcome
ब्लॉग में आपका स्वागत है
हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.
आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं .... You are my strength, inspiration :)
Thursday, April 8, 2010
Monday, April 5, 2010
मैं पगली हूँ
उसने कहा मुझसे
तुम पागल हो चुकी हो
अरे
हँसते क्या हो उस पर तुम
सच ही तो कहा उसने
मैं पगली हूँ
देखे क्या हो ऐसे तुम
हाँ!
हाँ, मैं पगली हूँ!
चाहा उसको यूँ टूटकर
क्यों चाहा
भले ही मांगी थी चाह मेरी
उसी ने
पर क्यों चाहा
जब दर्द दिए उसने
क्यों रोई
भले ही मांगे दर्द मेरे
उसी ने
पर क्यों रोई
क्यों ख़ुशी समझ गले लगाया
क्यों मुस्काई
भले ही किया मुस्कान का वादा
उसी ने
पर क्यों मुस्काई
क्यों उसका एकाकीपन बांटा
क्यों हाथ बढाया
भले ही साथ माँगा
उसी ने
पर क्यों हाथ बढाया
क्यों उसके आंसू अपनाए
क्यों गले लगाया
भले ही आंसू बहाए दामन पकड़
उसी ने
पर क्यों गले लगाया
क्यों मौत के सफ़र में चली
क्यों साथ निभाया
भले ही कहा है जीवन सूना
उसी ने
पर क्यों साथ निभाया
आज
जब जीते जी मौत देता है
तो चुप रहती हूँ
सुनो
सुनो तो
मैं हंसती हूँ
नैनों में भरे हैं आंसू
पर मैं हंसती हूँ
खूब हंसती हूँ
पर
पर दूर से सुनना
दूर से ही सुनना मेरे कहकहे
पास आओगे
तो जान जाओगे
खोखली है
खोखली है आवाज
मौत का सन्नाटा लिए
.
.
.
फिर भी
देखो तो
मैं जीती हूँ
जिसे पाया नहीं
उसे खोकर भी जीती हूँ
जब कहती हूँ
मैं तुम्हे
मुझमें जीवन नहीं
तुम भी तो कहते हो
'हट पगली'
तो
तो उसने भी तो यही कहा
तुम पागल हो चुकी हो
फिर
फिर तुम उस पर क्यों हँसते हो
ना हंसो उस पर
तुम
हृदय चीरती है
उस पर हंसती
तुम्हारी हंसी
चाहा मैंने
दर्द लिया
ख़ुशी समझी
हाथ बढाया
गले लगाया
साथ निभाया
पर ये सब तो मैंने किया
फिर क्यों कोसो उसको
ना कहो
ना कहो उसको तुम कुछ भी
मुझको कहो
मुझको कहो ना
मेरा क्या है
मैं पगली हूँ
मैं पगली हूँ
मैं
पगली
हूँ ...............
4:13pm, 5/4/10
तुम झूठे हो इस सच से क्यों भीगी हैं पलकें मेरी
जानती हूँ तुम नहीं आओगे
फिर भी मुझमें कितना इन्तजार भर गए
तुम ना होकर भी यहीं हो
ये कैसा भरम भर गए
सबने कहा कि तुम झूठे हो
मैंने कहा तुम सच हो
सबको सच्चा कर दिया
और मुझको झूठा कर गए
तुम मेरे कोई नहीं हो
पर मेरे होकर रह गए
मेरे हो गए थे तुम अगर
तो आँखों से कैसे बह गए
और ना हुए थे मेरे गर
तो यादो में कैसे ठहर गए
असमय चले आये जीवन में
समय नहीं, अब, कह गए
मैंने जितना विश्वास किया
उतना अविश्वास भर गए
हो प्रार्थना में तुम हर पल
जीवन अभिशप्त कर गए
सपनों में न आये पलभर
उठते ही कैसे चले गए
जिंदगी भर के साथ का वादा रहा
पलभर में छोड़ने को कह गए
खुश रहना ये कहते रहे
प्रीत को आंसुओं से भर गए
2:49pm, 3/4/10
फिर भी मुझमें कितना इन्तजार भर गए
तुम ना होकर भी यहीं हो
ये कैसा भरम भर गए
सबने कहा कि तुम झूठे हो
मैंने कहा तुम सच हो
सबको सच्चा कर दिया
और मुझको झूठा कर गए
तुम मेरे कोई नहीं हो
पर मेरे होकर रह गए
मेरे हो गए थे तुम अगर
तो आँखों से कैसे बह गए
और ना हुए थे मेरे गर
तो यादो में कैसे ठहर गए
असमय चले आये जीवन में
समय नहीं, अब, कह गए
मैंने जितना विश्वास किया
उतना अविश्वास भर गए
हो प्रार्थना में तुम हर पल
जीवन अभिशप्त कर गए
सपनों में न आये पलभर
उठते ही कैसे चले गए
जिंदगी भर के साथ का वादा रहा
पलभर में छोड़ने को कह गए
खुश रहना ये कहते रहे
प्रीत को आंसुओं से भर गए
2:49pm, 3/4/10
Friday, April 2, 2010
बिटिया फिर भी मेरे आँगन आना
वो चंचल खिलती कली
पलकों तले मेरे वो पली
बाहों में जब उसको भरा
दर्द सारा स्पर्श ने हरा
ममता मेरी खिल-खिल गई
मेरी लाडो जो मुझे मिल गई
आँचल में जो उसको छुपाया
माँ होने का गौरव पाया
तुतलाती वो मीठी बोली
कानों में ज्यों कोयल बोली
घुटनों पर वो तेरा चलना
ठुमकने से पायल का बजना
पहली बार वो पढने जाना
ममता का मेरे डर जाना
समय का वो बढ़ते जाना
तुझपर चिंता, प्यार लुटाना
पल-पल तेरा वो खिलना
रूप-स्निग्घ्द्ता का निखरना
बेटी से जुड़ा सत्य का आना
होगा तुझे अब पिया घर जाना
दूर कलेजे के टुकड़े का जाना
आशीर्वचन दे अश्रु छुपाना
सहना होगा मुझे, ये सब, जाना
बिटिया, फिर भी, मेरे आँगन आना
7:22pm, 2/4/10
वो दूरियां बढाने का सामान सजाते रहे
वो दूरियां बढाने का सामान सजाते रहे
हम नासमझ से फिर भी उन्हें बुलाते रहे
राहों में दीवारें वो चुनवाते रहे
मान परीक्षा हम उन्हें गिराते रहे
फूलों की बगिया को दूर हटाते रहे
सुगंध से हम खुद को बहलाते रहे
काँटों में वो पल-पल उलझाते रहे
दामन बचा हम फूल बरसाते रहे
गैरों के करीब वो जाते रहे
अपनों से दूर हम आते रहे
अपना दामन वो छुडाते रहे
वफ़ा के वादे हम निभाते रहे
12:14pm, 2/4/10
Thursday, April 1, 2010
तुम मंदिर क्या जाते हो
तुम मंदिर क्या जाते हो
तुमको क्या भगवन मिलेंगे
दर्द दिया है जो तुमने
उनकी मूरत में दिखेंगे
क़दमों में जो सर नवाओगे
तुमपर चढ़े श्रद्धा-फूल
खिलेंगे
दिए में जो लौ भरोगे
अश्रु मेरे वहां चमकेंगे
मन्त्रों का जाप करोगे
तो आहें मेरी सुनाई देंगे
श्रद्धाजल क्या चढ़ा सकोगे
मेरे रक्त-कण जब साथ बहेंगे
तुम मंदिर क्या जाते हो
तुमको क्या भगवन मिलेंगे
5:23pm, 1/4/10
उसने बेड़ियों का हार पहनाया है
दुनिया के आगे मुझे बेगाना बताया है
पलकों से जो एक-एक कर चुना है
काँटों को राह में उसने ही बिछाया है
बहने से पहले जिन आंसुओं को मैंने मिटाया है
होठों से हँसी छिनने का उसने बहाना बनाया है
हर दर्द सहकर भी उसे दुआ दी है
पर दर्द का उसने अम्बार लगाया है
वो तो उस को छलनी कर आया है
जिस सीने ने उसे दुनिया से बचाया है
मैंने तो जाने को भी कदम बढाया है
पर उसने बेड़ियों का हार पहनाया है
6:04 pm., 31/3/10
Subscribe to:
Posts (Atom)