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Wednesday, December 18, 2013

ye pagalpan ये पागलपन

एक बार तुझसे मिलकर जिंदगी से मुह मोड़ लूँ
ये जिंदगी बन गई है बस अब एक ख्वाब
भरमाता सा, इक अधूरा सा, रुलाता सा ख्वाब
हाँ मैं पगली तो हूँ ये मानती आई हूँ
अब ये पागलपन हद से गुजरे तो रुखसत ले लूँ.....

2.47pm, 18 dec, 13

6 comments:

  1. कल 20/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  2. प्रेम के पागल पण में जीना का मजा कुछ और ही है ...

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  3. वाह,,
    बहुत ही प्यारी सी रचना।।।
    बहुत सुन्दर…
    :-)

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  4. हाँ मैं पगली तो हूँ ये मानती आई हूँ
    अब ये पागलपन हद से गुजरे तो रुखसत ले लूँ.....
    पागलपन में जीना अलग है और उसकी हद से गुजरजाना अलग.जीने का मजा अलग और हद से गुजरजाना अलग आनंद देता है.एक वर्त्तमान है दूजा उम्मीद कुछ इसे सनकीपन भी मानते हैं.
    सुन्दर रचना.

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  5. कोमल भावो की
    बेहतरीन........

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